न युद्ध, न हिंसा! शान्ति और अहिंसा !!

सर्वोदय समाज का 48 वां सम्मेलन सेवाग्राम में संपन्न

14, 15 और 16 मार्च 2023 को सेवाग्राम में सर्वोदय समाज का 48वां सम्मलेन आहूत था और इसी सम्मेलन में शिरकत करने के लिए गांधीजनों की राष्ट्रव्यापी जमात सेवाग्राम पहुंची थी. मौका था सर्व सेवा संघ और सर्वोदय समाज की स्थापना के हीरक जयंती वर्ष का, जिसका उद्घाटन करने आये थे तिब्बत के पूर्व प्रधानमन्त्री सामदोंग रिनपोछे; गांधी जिनके आदर्श हैं, गांधी जिनके संघर्ष के मार्ग की मशाल हैं.

देश के इतिहास, समाज के वर्तमान और लोकतंत्र के भविष्य पर छाये संकट के बादल उस दिन पश्चिमी विक्षोभों के चलते सेवाग्राम के आसमान स्रे बरस रहे थे. सेवाग्राम; वह पुण्यभूमि, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपनी तपश्चर्या से धन्य किया और अपने सपनों से सींचा. बाबू भाई नारायण देसाई ने लिखा है कि गांधी भारत के इतिहास में भगवान कृष्ण के बाद सबसे अनूठे कर्मयोगी हुए। उन्होंने एक ही समय में तीन महाद्वीपों में काम किया और साथ-साथ स्वयं पर सत्य के अनथक प्रयोग करते रहे। यह वह समय था, जब वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली उस साम्राज्य से लोहा ले रहे थे, जिसके राज में सूरज कभी नहीं डूबता था। यंग इंडिया या हरिजन का कोई भी अंक उठा लीजिए या उनका लिखा हुआ कोई भी पत्र या भाषण, आप यह देखकर हैरान होंगे कि जीवन के कितने सारे क्षेत्रों से वे एक साथ वास्ता रखते थे और अपने वक्त के कितने सारे मसलों से अकेले जूझ रहे थे। उनकी यह तीव्रता या सघनता चंद दिनों की थी भी नहीं। यह साढ़े पांच दशक से भी ज्यादा समय तक निरंतर बनी रही।

वर्धा और सेवाग्राम की चढ़ती हुई तपन को थामने उतरे बादलों की इस फ़ौज का अंदेशा यूँ तो मौसम विभाग पहले से ही जता रहा था, लेकिन बापू के चरणों की धूल लेने, बापू के लोग देश के कोने कोने से फिर भी चले ही आ रहे थे. शांत और सुरम्य सेवाग्राम की धरती सत्य, करुणा और प्रेम के तुमुल उद्घोष से तरल हुई पड़ी थी, हवा के थपेड़ों और बारिश की बूंदों ने मंजर में सौरभ भर दिया था और बापू की चौकठ पर घुटने टेकने पहुंचा हर मन अन्दर से और बाहर से चौतरफा भींग रहा था. वे चाहे सुदूर दक्षिण के तमिल, तेलुगू, कन्नड़ या मलयाली हों या उत्तर के मैदानों के बाशिंदे, पूरब के निवासी हों या पश्चिम के; लगभग हर प्रदेश से आये लोकसेवक और गांधीप्रेमी सेवाग्राम के जर्रे-जर्रे में बिखरे इतिहास के पन्नों को आँखों ही आँखों में पी लेना चाहते थे.

दीप प्रज्ज्वलित कर सम्मेलन का उद्घाटन करते तिब्बत के पूर्व प्रधानमंत्री सामदोंग रिनपोछे

14, 15 और 16 मार्च 2023 को सेवाग्राम में सर्वोदय समाज का 48वां सम्मलेन आहूत था और इसी सम्मेलन में शिरकत करने के लिए गांधीजनों की राष्ट्रव्यापी जमात सेवाग्राम पहुंची थी. मौका था सर्व सेवा संघ और सर्वोदय समाज की स्थापना के हीरक जयंती वर्ष का, जिसका उद्घाटन करने आये थे तिब्बत के पूर्व प्रधानमन्त्री सामदोंग रिनपोछे; गांधी जिनके आदर्श हैं, गांधी जिनके लिए आइना हैं, गांधी जिनके जीवन की रोशनी हैं, गांधी जिनके संघर्ष के मार्ग की मशाल हैं और गांधी जिनके आराध्य हैं. सामदोंग रिनपोछे जब सर्वोदय समाज का उद्घाटन करने मंच पर चढ़े, तो देखने वालों ने देखा कि वे अब बूढ़े हो चले हैं. यह 14 मार्च की सुबह थी. सम्मेलन का मंच सज चुका था. विशाल पंडाल में हजारों अभ्यागत जुट चुके थे. तीन दिवसीय इस सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष और गाँधी विचार के वयोवृद्ध अध्येता व प्रवक्ता अमरनाथ भाई. मुख्य अतिथि थीं बापू की पौत्री तारा गाँधी भट्टाचार्य और स्वागताध्यक्ष थे महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री सुनील केदार. कुल आठ सत्रों-उपसत्रों में विभाजित इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र का संचालन कर रहे संतोष द्विवेदी ने एक एक कर आमंत्रित अतिथियों के नाम पुकारने शुरू किये और मंच सजता गया. सर्वोदय समाज के संयोजक सोमनाथ रोड़े, सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चन्दन पाल, सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान की अध्यक्ष आशा बोथरा, राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय के अध्यक्ष अन्नामलाई, गाँधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ सुगन बरंठ, वर्तमान महामंत्री गौरांग महापात्र, मंत्री अरविन्द कुशवाहा, मैनेजिंग ट्रस्टी शेख हुसैन, रमेश ओझा, पद्मश्री डॉ अभय बंग, उत्तम परमार, धीरूभाई मेहता, राकेश दीवान, प्रो जावेद पाशा, अविनाश काकड़े, सुदाम पवार, सुजाता तापसांडे, माधवराव सहस्रबुद्धे, प्रशांत नागोसे, टीआरएन प्रभु, अशोक शरण, सवाई सिंह, प्रदीप खेलुरकर, डॉ. विभा गुप्ता, रामधीरज, रमेश दाने, चिन्मय मिश्र, इस्लाम हुसैन, विश्वजीत घोराई, मिहिर प्रताप दास, शंकर नायक, अन्ना जाधव, मदन मोहन वर्मा और चित्रा वर्मा आदि अभ्यागतों की उपस्थिति से सज चुके मंच पर सम्मेलन में आये सभी का स्वागत किया सुनील केदार ने, उपस्थित गांधीजनों का स्वागत करते हुए सर्वोदय समाज के 50वें सम्मेलन की मेजबानी के लिए उन्होंने अपनी और सेवाग्राम की उम्मीदवारी भी प्रस्तुत की. इसके बाद सर्वोदय समाज के संयोजक सोमनाथ रोड़े ने अपना अभिमत प्रस्तुत किया. उन्होंने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि यह महाराष्ट्र में होने वाला 11वां और सेवाग्राम में होने वाला 5वां सम्मेलन है. सृष्टि और मानव के बीच शोषण का सम्बन्ध न रहे, सर्वोदय समाज का यह दृढ़ संकल्प है. इसके लिए सत्य, प्रेम और करुणा ही हमारे पाथेय हैं.

संयोजक सोमनाथ रोड़े के बाद आशा बोथरा ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि बुद्ध, महावीर या गांधी की अहिंसा में कोई अंतर नहीं है. सत्य भी एक ही है, न कहीं ड्योढ़ा, न सवाया. सत्य अपने आप में पूर्ण होता है और अविभाज्य होता है. विशाल और व्यापक दो समानार्थी शब्द हैं, लेकिन महीन अंतर यह है कि विशाल जहां भव्यता के करीब होता है, वहीं व्यापक दिव्यता के करीब होता है. हम गांधी परिवार के लोग हैं, जो सामूहिकता से संधान में विश्वास रखते हैं. जब हम खुद से उठकर सबमें समाते हैं, तो सर्वोदय का उदय होता है. इस सम्मेलन के अध्यक्ष अमरनाथ भाई से हमारी पीढ़ी ने सर्वोदय की दीक्षा पायी है और यही सीखा है कि अंतिम आदमी को पहली सीढ़ी पर कैसे ले आना है, यही सर्वोदय की परिक्रमा है.

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चन्दन पाल ने कहा कि सर्वोदय समाज तथा सर्व सेवा संघ के 75 साल पूरे होने के अवसर पर मैं आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूँ. हम एक वृहद लोकसमूह वाले समाज हैं. इस सम्मेलन में नये, पुराने लोग, महिलाएं-पुरुष, बच्चे-बूढ़े, शिक्षित-अशिक्षित, अमीर-गरीब, किसान-श्रमिक, काले-गोरे, मालिक-मजदूर, देशी-विदेशी एक जगह पर एक साथ मिलते हैं. इस अवसर का भरपूर उपयोग होना चाहिए.

तारा गांधी भट्टाचार्य का सम्मान करते सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल

परंपरा रही है कि सर्वोदय समाज सम्मेलनों में कोई प्रस्ताव नहीं पास होता रहा है, लेकिन मैं सोचता हूँ कि इस पर पुनर्विचार होना चाहिए. जब इतने लोग एक साथ होते हैं, विभिन्न विमर्श होते हैं, तब साथी कुछ तो निष्कर्ष साथ में लेकर लौटें. यहाँ से लौटते समय विचार भावना की स्वच्छता और एकसूत्रता बढ़े तो सम्मेलन का महत्त्व बढ़ जायेगा. देश के अन्दर धर्मं, सम्प्रदाय, जात-पात, छुआछूत आदि को लेकर दंगाफसाद होते हैं, यह विभाजन, भाईचारा बढ़ाने की हमारी भावना के सामने एक चैलेंज है. अनेक प्राकृतिक आपदाओं के समय शांति सैनिकों की जरूरत पड़ती है. इसके लिए सारे देश में शांति सेना की छोटी-छोटी टोलियां बनाने की जरूरत है.

इसके बाद अपने उद्घाटन भाषण के लिए माइक सम्भाला सम्मेलन के उद्घाटक सामदोंग रिनपोछे ने. उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि आज की युवा पीढ़ी को जिस तरह गांधी के करीब आता हुआ देख रहा हूँ, वह बहुत संतोषप्रद और स्वागतयोग्य है. लगभग 15-20 साल हुए, अपने सभी सामजिक दायित्वों से मुक्ति लेकर मैं स्वाध्याय और ध्यान को समय दे रहा हूँ. ऐसे में इस सम्मेलन का उद्घाटन करने के लिए आपने मुझे क्यों चुना, मुझे नहीं मालूम. इतना मालूम है कि आपके सामने रखने के लिए मेरे पास कोई नई बात, नया तथ्य नहीं है. लेकिन सेवाग्राम आने और बापू कुटी के दर्शन के लोभ से मैं मुक्त नहीं हो पाया.

सम्मेलन को संबोधित करते सामदोंग रिनपोछे

इस सम्मेलन का क्या महत्व है, क्या विशेषता है, वर्तमान समय में मनुष्य जिन चुनौतियों से जूझ रहा है, उन चुनौतियों के सामने मनुष्य होने के नाते, खासकर गांधी विनोबा का अनुयायी होने के नाते, सर्वोदय समाज का सदस्य होने के नाते हमारी क्या जिम्मेदारियां हैं, इस विषय में बहुत कुछ कहा जा चुका है. उन बातों को आत्मसात करना हमारी जिम्मेदारी है.

इसके बाद उद्घाटन सत्र को संबोधित किया तारागांधी भट्टाचार्य ने. सबसे पहले उन्होंने यह कहकर सामदोंग रिनपोछे का अभिवादन किया कि इस गरम दोपहरी में उनकी वाणी मां की लोरी की तरह आराम पहुंचाती है. इस वाणी में आध्यात्मिकता और मानवीयता का विलक्षण समन्वय मिलता है. इस वक्तव्य के बाद भी बोलना धृष्टता लगती है. लेकिन आप सबके बीच आई हूँ, तो कुछ कहकर ही जाऊंगी.

सम्मेलन को संबोधित करती तारा गांधी भट्टाचार्य

सेवाग्राम की इस पुण्य भूमि को मैं प्रणाम करती हूँ, जहां से न सिर्फ बापू की, बल्कि कस्तूरबा की आवाज़ गूंजी. यह जमीन हमें सिखाती है कि सर्वोदय के आचरण के बिना मनुष्य का विकास हो ही नहीं सकता. यहाँ बचपन से ही आती रही हूँ. सेवाग्राम मुझे दो वजहों से कभी नहीं भूलता. एक तो बा की रसोई और दूसरे पारिजात के फूल. इन दोनों से उठने वाली सुगंध आजतक मनोमस्तिष्क में भरी हुई है. बापू कहते थे कि फूल तोड़ना भी हिंसा है. अगर किसी को फूल देना ही हो तो पारिजात के दो. पारिजात के फूल तोड़े नहीं जाते, वे खुद झरते हैं.

तारा गांधी भट्टाचार्य के बाद इस सत्र को सम्मेलन के अध्यक्ष अमरनाथ भाई ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि आज का सबसे बड़ा संघर्ष मृत्यु और जीवन का संघर्ष है. हिंसा, अहिंसा, गांधी, मार्क्स से आगे का प्रश्न है कि हमें जीवन प्रिय है या मृत्यु? अगर जीवन चाहिए तो गांधी और हिंसा को अपनाना पड़ेगा और अगर मृत्यु चाहिए तो देखिये, मृत्यु आ रही है. गांधी जी ने हिन्द स्वराज में ही लिख दिया था कि मैं पश्चिमी सभ्यता का विरोधी हूं. यह शैतानी सभ्यता है और एक दिन यह खुद का नाश कर लेगी. दुखद यह है कि आज पूरी दुनिया उसी सभ्यता में आकंठ डूब चुकी है. पर्यावरण का संकट आज मनुष्यता के लिए संकट बनकर खड़ा हो गया है. गाँधी और सर्वोदय के मार्ग के अलावा जीवन का आज दूसरा कोई विकल्प नहीं दिखाई पड़ता. इस सम्मेलन का आयोजन इसी सच को समझने की दिशा में हमारा अगला कदम साबित हो. इसके बाद अशोक भारत ने सभी उपस्थित अतिथियों और स्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया और बजरंग सोनावड़े तथा प्रशांत गूजर के नेतृत्व में हुए क्रन्तिगीत के साथ उद्घाटन सत्र का समापन हुआ.
बढ़ती आर्थिक असमानता, हिंसा और युद्ध के आज के दौर में शांति और न्याय के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं? यह दूसरे सत्र का विषय था. मुख्य वक्ता थे डॉ अभय बंग. इस सत्र का संचालन कर रहे थे सर्व सेवा संघ के मैनेजिंग ट्रस्टी शेख हुसैन. डॉ अभय बंग ने विषय की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि मुझे ख़ुशी हो रही है कि 75 वां सर्वोदय समाज सम्मेलन आज उसी जगह हो रहा है, जहां इसका पहला सम्मेलन हुआ था. इस जगह को ज्यादा अच्छी तरह शायद हम अब समझ पाएंगे क्योंकि 75 वर्ष का यह सफर, उसका अनुभव, उसकी ठोकरें. सभी हमारे साथ हैं.

एक विशेष बात का जिक्र करूं, जिसकी मुझे बहुत खुशी है. इसी सेवाग्राम में करीब 8 साल पहले साथियों के रास्ते अलग हो गये थे, उनमें से ज्यादातर साथी आज एक बार फिर से इस सर्वोदय समाज सम्मेलन में एक साथ उपस्थित हैं. मुझे सही मायने में लगता है कि एक दूसरे के मतभेदों का सम्मान करते हुए हम सबने एक साथ लोकतंत्र की यात्रा में 75 साल पूरे कर लिए हैं. डॉ अभय बंग के अलावा इस सत्र में सचिन राव, इस्लाम हुसैन, श्रीकांत बारहाते, जयदीप हार्डीकर आदि ने भी अपनी बात रखी.

इस सत्र की अध्यक्षता अरविन्द अंजुम ने की और कन्हैया छांगाड़ी ने धन्यवाद ज्ञापन किया. सर्व धर्म प्रार्थना के साथ पहले दिन के कार्यक्रमों का समापन हुआ. भोजन के बाद स्थानीय कलाकारों का सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुआ.

चंदन पाल

अगले दिन 15 मार्च को सर्व सेवा संघ और सर्वोदय समाज का 75वां स्थापना दिवस था. मुख्य सम्मेलन से पहले ही इस उपलक्ष्य में एक औपचारिक कार्यक्रम सुबह 9 बजे ऐतिहासिक महादेव भाई भवन में हुआ. इस कार्यक्रम में चन्दन पाल, सोमनाथ रोड़े, अशोक शरण, अशोक भारत, अरविन्द अंजुम, अविनाश काकड़े, अमरनाथ भाई. आशा बोथरा, टीआरएन प्रभु आदि के अलावा डॉ अभय बंग ने भी सक्रिय भागीदारी की. डॉ अभय बंग इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे.

उल्लेखनीय है कि यह वही महादेव भाई भवन है, जिसमें बैठकर तत्कालीन समाज के नेताओं ने सर्वोदय समाज और सर्व सेवा संघ की स्थापना की थी. वक्ताओं ने बीते 75 वर्षों की यात्रा की मीमांसा और आत्मावलोकन किया. लगभग घंटे भर के इस कार्यक्रम के बाद मुख्य सभा पंडाल में मुख्य कार्यक्रम शुरू हुआ. सर्व सेवा संघ की ओर से प्रतिवर्ष दिया जाने वाला एक लाख रूपये का गांधी पुरस्कार इस वर्ष सतारा, महाराष्ट्र के वयोवृद्ध अन्नासाहब जाधव को घोषित किया गया था. इस पुरस्कार की स्थापना गांधीप्रेमी मदनमोहन वर्मा और उनकी पत्नी चित्रा वर्मा की प्रेरणा से की गयी थी. पिछले वर्ष यह पुरस्कार असम की वयोवृद्ध समाजसेविका कुसुमबोरा मोकाशी को दिया गया था. प्रकाशन विभाग के कार्यकर्ता तारकेश्वर सिंह ने 92 वर्षीय अन्ना साहब की जीवन यात्रा का विवरण पढ़कर सुनाया.

अमरनाथ भाई

सम्मेलन के अध्यक्ष अमरनाथ भाई और सर्वोदय समाज के संयोजक सोमनाथ रोड़े ने अन्ना साहब जाधव को सम्मान पत्र और शाल के साथ ₹100000 का चेक देकर सम्मानित किया. इस अवसर पर मदनमोहन वर्मा और चित्रा वर्मा को भी मंच द्वारा सम्मानित किया गया. मदनमोहन वर्मा के बारे में प्रसिद्ध है कि उन्होंने बापू की आत्मकथा की 50 हजार प्रतियाँ लोगों के बीच पढ़ने के लिए बांटी हैं और दर्जनों गांधी प्रतिमाओं की स्थापना भी करवा चुके हैं. सम्मान कार्यक्रम के बाद अपना आभार प्रकट करते हुए अन्नासाहब जाधव ने कहा कि मुझे इस बात की ख़ुशी है कि आज यहाँ तक मैं जीवित पहुंच गया हूँ. 92 वर्ष की उम्र हो गयी है और तकरीबन पिछले 50 वर्षों से सर्वोदय आन्दोलन के काम में जुटा हुआ हूँ. कुछ बोलने की मेरी इच्छा नहीं थी, लेकिन जब पहुंच गया हूँ तो दो शब्द जरूर कहूँगा. यहाँ बैठे हुए सभी लोगों से मेरा अनुरोध है कि वे जांचें कि उनकी क्रियाशीलता किधर जा रही है.

इसके बाद गांधी पुरस्कार के प्रेरक मदनमोहन वर्मा ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम अन्ना को पुरस्कार प्राप्त करने के लिए बधाई देता हूँ. मुझे लगता है कि इन विपरीत हालात में भी गांधीजी का समाज में बहुत अधिक विरोध नहीं है. लोगों के सुने सुनाये कुछ सवाल हैं. इनका उत्तर मिल जाए तो उनका विरोध खत्म हो जाता है. लेकिन आज देखता हूँ तो समाज में गांधी साहित्य का अभाव है. सचमुच गांधी की आत्मकथा बाइबल है, कुरान है, जीता जागता रामायण है. मदनमोहन वर्मा के संबोधन के बाद सर्वोदय जगत के सम्मेलन विशेषांक का सम्मेलन के मंच से लोकार्पण किया गया. इस सत्र का संचालन गोरांग महापात्र ने किया.

आज के अगले सत्र का विषय था-विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन. सत्र के संचालक अशोक शरण ने वक्ताओं का मंच पर आने का आह्वान किया और सत्र की विधिवत शुरुआत हुई. विषय प्रवेश कराने की जिम्मेदारी चिन्मय मिश्र की थी. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीने की कला सीखने के लिए बापू के सेवाग्राम से रिश्ते को समझना पड़ेगा. विकास को अगर समझना है, तो बापू यहाँ आकर कैसे बसे और कैसे जिए, इस जादू को समझने की जरूरत है. यह भी समझने की जरूरत है कि लोगों की अपनी भागीदारी कैसे सेगांव को सेवाग्राम बनाती है. आज हम विकास और प्रकृति के दोहन पर बात कर रहे हैं तो यह अवश्य देखें कि पूरे गांधी वांग्मय में विकास शब्द कहां आता है? शायद ही कहीं विकास शब्द उनकी वैचारिकी में आता हो. दोहन और शोषण के बीच बहुत महीन सी रेखा है. शोषण का रौद्र रूप अभी अभी हमने जोशीमठ में देखा है. अपना समय बचाने के नाम पर हमने अपने प्राकृतिक पर्यावरण का खूब शोषण किया है. पहले हमारी यात्राएं दो दिन या चार दिन की होती थीं. अब हमारी यात्राएं एक घंटे या दो घंटे की होती हैं. हमने पर्वतों को काटकर सड़कें और सुरंगें बनाई हैं, समुद्र में भी सड़क बनाई है और अपना समय बचाया है, लेकिन इस बीच जो चीज नहीं बचा सके, उसका नाम पर्यावरण है. हम देख रहे हैं कि दुनिया में मकानों की बाढ़ आई हुई है, पर ये मकान असल में तो जमीन से जुड़े नहीं है.

सोमनाथ रोड़े

अगले वक्ता थे सूरत, गुजरात से आये उत्तम भाई परमार. उन्होंने कहा कि आज मुझे इस बात के लिए अपराधबोध हो रहा है कि रोजाना की जिन्दगी में खुद मेरे ही हाथ से पर्यावरण का हनन होता रहता है. ऐसा मैं जानबूझकर करता हूं, सो बात नहीं है, दरअसल मुझे जो समाज मिला है, अपने चारों तरफ मैं जिन लोगों से घिरा हुआ हूं, उनकी जिस सामूहिक चेतना से मैं संचालित होता हूँ, उसमें ऐसा अपनेआप होता है. इसमें अच्छी बात इतनी ही है कि जो किया है, वह स्वीकार कर रहा हूँ.

उत्तम परमार के संबोधन के बाद सत्र में बोलने वाली अगली वक्ता थीं इस सत्र की अध्यक्षता कर रहीं मीनाक्षी नटराजन. उन्होंने कहा कि जब हम पर्यावरण और प्रकृति के बारे में बात करते हैं और उसके साथ-साथ विकास को समझने की कोशिश करते हैं, तो सबसे पहले तो हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि असल में हम अपनी चिंता कर रहे हैं, क्योंकि यह जो प्रकृति है, इसका जितने लंबे समय का अस्तित्व है, धरती का अगर इतिहास समझें, तो हमारा अस्तित्व इस पूरी धरती और समय के कालचक्र में एक बाल के बराबर हैं. हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि पर्यावरण को अपना ख्याल रखना आता है. हमारे तमाम शोषण, दोहन और लूट के बाद जब करोड़ों साल बीत जाएंगे तो प्रकृति अपने आप को ठीक कर लेगी, लेकिन हम ठीक नहीं हो पाएंगे. हमने बहुत ारे ग्रहों-नक्षत्रों और अनेक तरह की आकाशगंगाओं का पता लगाया है. हम वहां तक जा सकते हैं, लेकिन वहां जाकर बस नहीं सकते. यह हमारी दुविधा है और उसका परिणाम यह है कि हम चाहें या न चाहें, हम इस धरती को छोड़कर कहीं और अस्तित्व में नहीं रह सकते. इसलिए आज की हमारी चिंता असल में अगली पीढ़ी की चिंता है कि उनका क्या होगा और इस पूरे वातावरण में वे आगे कैसे रहेंगे या नहीं रहेंगे. कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि जैसे बड़े-बड़े दूसरे जीव नहीं रहे, वैसे ही हम भी विलुप्त हो जाएँ? सेपियंस के अलावा अन्य मानव प्रजातियाँ बची भी नहीं, इसलिए हमें अपनी चिंता बहुत ज्यादा करनी होगी. इसके अलावा इस सत्र में एडवोकेट अशोक यावले, डॉ अरुण, संजय सिंह, प्रकाश, नाथू सिंह तोमर, ज्ञान सिंह राठौड़, स्वतंत्र जैन, श्याम सुंदर आदि वक्ताओं ने भी अपनी बात रखी. इस सत्र का संचालन अशोक शरण ने और धन्यवाद ज्ञापन गौरांग महापात्र ने किया.

इसके बाद ‘हमारा युवा और आज की चुनौतियां’ विषय पर युवाओं का सत्र हुआ. संकेत मुनोत इस सत्र के प्रमुख वक्ता थे. लेकिन विषय प्रवेश किया युवा हल्लाबोल के नेता अनुपम ने. उन्होंने कहा कि मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे पहली बार सेवाग्राम आने का अवसर मिला है. यह सिर्फ किसी यात्रा की तरह नहीं, किसी एक और सम्मेलन की तरह नहीं, मुझे एक तीर्थयात्रा की तरह लगता है. मुझे लगता है कि समाज और मानवता से संबंधित कोई भी विषय हो, उन सब में एक इंटरकनेक्टिविटी होती है, एक ऑर्गेनिक कनेक्शन होता है. पर्यावरण का विषय हो, विकास की बात हो, अर्थव्यवस्था की बात हो, रोजगार की बात हो, शिक्षा की बात हो, गवर्नेंस की बात हो, एक ऑर्गेनिक कनेक्शन इन सभी विषयों में होता है.

सत्र के अंत में इस सत्र के अध्यक्ष और मुख्य वक्ता संकेत मुनोत ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि मैं पुणे से हूं; वही भूमि, जहां गांधी हत्या का षडयंत्र रचा गया था और उन पर बहुत सारे अटैक वहीं से हुए, अंततः उसी व्यक्ति ने उन्हें दिल्ली में जाकर मारा. गाँधी जी कहते थे कि दुनिया में जो बदलाव लाना है, उसे पहले खुद से शुरू करना है. आज जब आप किसी के खिलाफ आवाज उठाते हैं, सच के लिए बोलते हैं, तो तुरंत आपको देशद्रोही या टुकड़े-टुकड़े गैंग से जोड़ दिया जाता है और बाद में पाकिस्तान चले जाओ बोल के डराने की कोशिश होती है. हमें डरना नहीं चाहिए. गांधी ने जो सिखाया है, वह सीखना चाहिए. इस सत्र में अमित सरोदे, एडवोकेट दुर्गा प्रसाद, चतुर्भुज यादव, मनोज ठाकरे, ऊषा विश्वकर्मा, जयंत नंदापुरे आदि वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे. इस सत्र का संचालन प्रशांत नागोसे और धन्यवाद ज्ञापन मानस पटनायक ने किया.

डॉ. अभय बंग

अगले सत्र का विषय था ‘आज की समस्याएँ और सभ्यता का संघर्ष’. इस सत्र के मुख्य वक्ता थे प्रो जावेद पाशा. उन्होंने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम से बने इस मंच पर मैं आप सभी का स्वागत करता हूँ. सभ्यताओं का कोई संघर्ष नहीं होता. सभ्यताएँ मनुष्य का उसकी चेतना से परिचय कराती हैं, मनुष्य को जीना सिखाती हैं. परम्पराओं द्वारा संस्कृतियों का निर्माण कैसे होता है, यह सभ्यता हमें सिखाती है. सभ्यता के ऊपर जो पुरोहितवाद कुंडली मारकर बैठता है, यह उसके अपने बीच का संघर्ष है.

मजदूर नेता डॉ कृष्ण प्रसाद ने कहा कि सभ्यता का मतलब कोई मजहब नहीं, एक जीवन शैली है. हमारी सभ्यता को आधुनिक कहा जाता है. आधुनिकता के साथ साथ समस्याएँ भी आती हैं. इसकी चेतावनी सवा सौ साल पहले ही गांधी जी ने दे दी थी. ग्राम स्वराज का रास्ता छोड़कर आधुनिकता की तरफ की यह दौड़ सभी को शैतान बना रही है. उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रामधीरज ने कहा कि इस लूट की सभ्यता से कैसे निपटा जाय, यह आज का सवाल है. गाँवों की अपनी सभ्यता है. गाँव और किसान ही एकमात्र इकाई है, जो जितनी लागत लगाता है, उससे अधिक पाता है. इन गाँवों से हो रहा प्रतिभाओं का पलायन गाँवों को खाली कर रहा है. गाँव से जो लिया जा रहा है, उतना वापस नहीं किया जा रहा है. जबतक यह अंतर कम नहीं होगा, तबतक गाँव को बचाया नहीं जा सकता. इन्हीं गाँवों को बचाने के लिए गांधी ने सात लाख ज़िंदा शहीद मांगे थे. साम्ययोग साधना के सम्पादक रमेश दाने ने कहा कि दो तरह की सभ्यताएँ फ़िलहाल चल रही हैं. एक है पाश्चात्य सभ्यता और दूसरी है धर्म के आधार पर राष्ट्रवाद के नाम पर चलने वाली सभ्यता. इन सभ्यताओं के बीच कोई संघर्ष हो तो उसे छोड़िये, हमारा एक सुप्त सा संघर्ष तो आज हमारे घरों में घुस चुकी सभ्यता से है. हमारी जीवन शैली आज बाज़ार की चपेट में फंस गयी है. इसके बाद सत्र को गाँधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि गांधी को बिना पढ़े और समझे गांधी का काम करने में जो खतरा है, उसने हमें एक उलझन तक पहुंचा दिया है. हम विनोबा को भी नहीं पढ़ते, जेपी को भी नहीं पढ़ते और बिना उन्हें पढ़े, हम वह सब करना चाहते हैं, जो उन लोगों ने बहुत कुछ पढ़ समझकर करना शुरू किया. जेपी को गाँधी ने इस बात का प्रमाणपत्र दिया था कि साम्यवाद के बारे में जेपी जो नहीं जानते, वह एशिया में कोई नहीं जानता. हम सब लोगों का प्रारम्भ बिन्दु गांधी है. गांधी बहुत ओरिजिनल हैं, इसलिए बहुत कठिन है. जेपी कहते थे कि गांधी की एक एक बात समझने में मुझे दस दस साल लगे हैं. कोई चीज सही है या गलत, इसका बहुत छोटा सा सूत्र बता दिया गांधी ने कि जो जरूरी नहीं है, वह गलत है. जैसे इतने बड़े पंडाल की यहाँ जरूरत नहीं थी, इसलिए यह गलत है. जो हम खुद के बल पर कर नहीं सकते, जब वह करने चलेंगे, तो बहुत कुछ ऐसा सहना पड़ेगा, जो पसंद नहीं आएगा. इसलिए अपने आयोजन अपने बल पर होने चाहिए. कुमार प्रशांत के वक्तव्य के बाद इस सत्र का समापन हुआ. इस सत्र का संचालन शिव चरण ठाकुर ने और धन्यवाद ज्ञापन अजमत ने किया.

सर्वोदय जगत के सम्मेलन अंक का लोकार्पण

आखिरी दिन 16 मार्च के पहले सत्र का विषय था ‘अहिंसक समाज निर्माण के आयाम’. इस सत्र की अध्यक्षता की विभा गुप्ता ने और मुख्य वक्ता थे मोहन हीरा भाई हीरालाल. विषय प्रवेश कराते हुए मोहन हीरा भाई ने कहा कि अहिंसक समाज रचना की बुनियाद में क्या है, आज समझने की जरूरत है. प्रकृति का नियम है कि जो बोवोगे, वही काटोगे. हिंसा की बुनियाद पर अहिंसक समाज का निर्माण नहीं हो सकता. आज हिंसा से घबराई हुई दुनिया जानती है कि इसके बीज उसने खुद बोये हैं. हमने लोकतंत्र को अपने लिए सही व्यवस्था माना था, लेकिन अहिंसक समाज रचना का काम बहुमत से नहीं होता. हमने जो सोचा था, वह गलत साबित हुआ. बहुमत का अर्थ ही है अल्पमत को नकारना. यह भी हिंसा ही है. इस हिंसा की बुनियाद पर लिए गये निर्णय हमें युद्ध तक पहुंचा देते हैं.

गाँधी स्मारक निधि के मंत्री संजय सिंह ने कहा, सवाल यह है कि जबतक हमें हिन्द स्वराज की गूढ़ता समझ नहीं आती, तबतक हम देश के संविधान को ही समझकर क्यों न चलें, एक तो यह रास्ता हो ही सकता है. हम समझते हैं कि मनुष्य के अहिंसक हुए बिना अहिंसक समाज का निर्माण बहुत दूर की कौड़ी है. गाँधी के विचार संसार में व्यक्ति निर्माण का काम बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. वे मनुष्य के भीतर अपार सम्भावना देखते थे. राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय के निदेशक अन्नामलाई ने कहा कि आज सुनने का तरीका विकसित करने की जरूरत लगती है. आज किसी की सुनने को कोई तैयार नहीं, यह बड़ी समस्या है. हम एक दूसरे के साथ जब इन्टरैक्ट करते हैं, दूसरों को सुनते हैं, तभी एक दूसरे की भावनाओं से परिचित हो पाते हैं. पहले हम समाज तो बनें, अहिंसक समाज के निर्माण की प्रक्रिया तो इसके बाद शुरू होगी. और यह प्रक्रिया बच्चों से शुरू करके बड़ों तक ले जाने की जरूरत है. मगन संग्रहालय, वर्धा की अध्यक्ष डॉ. विभा गुप्ता ने कहा कि हमें अपनी ताकत को पहचानना चाहिए कि पूरे देश में बड़ी संख्या में ऐसे संगठन हैं, जो गांधीवादी विचारों पर जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि हम गांधी के राजनीतिक अहिंसा प्रयोगों के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन कुटीर उद्योगों के क्षेत्र में उनके अनूठे प्रयोगों के बारे में कम ही जानते हैं।

उन्‍होंने कहा कि वैश्वीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रभुत्व के इस युग में हमें आत्मनिर्भर बनने और प्रकृति की रक्षा के लिए स्वराज की दिशा में विभिन्न प्रकार के काम करने की आवश्यकता है। तेल स्वराज, आयातित खाद्य तेलों पर हमारी निर्भरता को कम कर सकता है और हमारे स्वास्थ्य और कल्याण की रक्षा कर सकता है। बीज स्वराज, बीजों की हमारी स्वदेशी नस्लों की रक्षा कर सकता है और आनुवांशिक रूप से संशोधित बीजों के लिए उत्पन्न होने वाले खतरों से बचा सकता है। मृदा स्वराज, हमारी उपजाऊ मिट्टी की रक्षा कर सकता है और नष्ट हो रही है तथा बंजर भूमि में सुधार कर सकता है। हमें एक अहिंसक समाज बनाने के बारे में सोचने और सक्रिय होने की जरूरत है। इसके अलावा सदाशिवम पिल्लई, रवीन्द्र निरुपम, मदनमोहन वर्मा, मारुति तरोड़े, मेहर कटारिया, विजय आनन्द, मिहिर प्रताप, शंकर राणा, मोहम्मद जाकिर हुसैन, गोविंद मुंडा, बलराम सेन आदि वक्ताओं ने भी सत्र में अपने विचार रखे. इस सत्र का संचालन डॉ विश्वजीत ने किया.

वर्ष 2022 का गांधी पुरस्कार स्वीकार करते अन्ना साहब जाधव

इस सत्र के बाद आखिरी समापन सत्र का आयोजन हुआ. इस सत्र में सम्मेलन के अध्यक्ष अमरनाथ भाई, सोमनाथ रोड़े, चन्दन पाल, आशा बोथरा, अविनाश काकड़े, गौरांग महापात्र, अरविन्द कुशवाहा, प्रभाकर पुरुषोत्तम, सभी प्रदेश सर्वोदय मंडलों के अध्यक्ष/प्रतिनिधि शामिल हुए. समापन सत्र का संचालन अशोक भारत ने किया. समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए अमरनाथ भाई ने आज की परिस्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद देश भर में लोग थोड़ा जागे हैं, ऐसा लग रहा है। क्योंकि लोग अब बोल रहे हैं, लिख रहे हैं, इतना ही नहीं, सरकार भी थोड़ी डरी हुई है। आज हमारे सामने दो चुनौतियां हैं, पहली, हमें सत्ता से मुक्त होना है और दूसरी, गांधी का स्वराज बनाना है। मार्क्स ने वर्ग संघर्ष की बात कही थी, गांधी ने वर्ग निराकरण और साधन शुद्धि की बात कही। तारा गांधी भट्टाचार्य ने कहा कि आज ऐसा लग रहा है कि वास्तव में सर्वोदय साकार हो रहा है। महाराष्ट्र की भूमि तो पवित्र है ही, उसमें सेवाग्राम और पवनार की भूमि का अपना एक अलग और अद्भुत महत्व है। सर्वोदय का अर्थ तो सर्वांगीण है। बापू ने हम लोगों को अंग्रेजों से आजाद नहीं किया, बल्कि उन्होंने अंग्रेजों को आजाद किया, जो हमारे ऊपर अत्याचार कर रहे थे। बापू की अंतिम इच्छा थी कि सर्वोदय को सशक्त करना है। सर्वोदय के बिना विकास संभव नहीं, सर्वोदय ही विकास है। इसलिए और कोई बदले अथवा न बदले, स्वयं अपने में बदलाव लाएं।

सम्मेलन के दौरान आयोजन में महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रफुल्ल, अविनाश काकड़े, एकनाथ डगवार आदि का सम्मान किया गया। सम्मेलन का निवेदन पत्र मध्य प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष चिन्मय मिश्र ने प्रस्‍तुत किया। समापन सत्र में सर्वोदय समाज के संयोजक सोमनाथ रोड़े, सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल, सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान की अध्यक्ष आशा बोथरा और कार्यक्रम के संयोजक अविनाश काकड़े ने सभी के प्रति धन्यवाद प्रकट किया।

इन तीन दिनों में दिन भर की गहन वैचारिक चर्चा के बाद हर रोज शाम को स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए. इन कार्यक्रमों में देश के कोने कोने से आये गांधीजनों ने जमकर लुत्फ़ उठाया और खाली समय निकालकर सभी ने बापू का अंतिम आश्रम सेवाग्राम आश्रम देखा, बापू और बा की कुटियों के दर्शन किये और उस आध्यात्मिक ऊर्जा को महसूस किया, जो इस हवा में आज भी तारीं है.

-सर्वोदय जगत डेस्क

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