न्याय के लिए सर्वोदयी योद्धा का न्यायालय से अनवरत संघर्ष

सर्वोदय आन्दोलन ने इस देश को अनेक महान विभूतियाँ दी हैं। ऐसी ही एक महान विभूति मेरठ में कृष्ण कुमार खन्ना जी हैं। कृष्ण कुमार एक ऐसे अनथक योद्धा हैं, जो देश की आजादी के लिए जेल गये, वहीं जब देश में लोकतंत्र पर संकट के बादल मंडराये तो आपातकाल के विरुद्ध सत्याग्रह करके फिर जेल गये। जेल जाने का यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, बल्कि अभी तक कई बार भारतीय न्याय व्यवस्था में व्याप्त अनियमितता और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ते हुए भी खन्ना जी और उनके साथी जेल जा चुके हैं। उनका यह संघर्ष यहीं नहीं रुका। वह हमेशा गलत के विरुद्ध गाँधी और विनोबा के बताये अहिंसक मार्ग पर चलते हुए जूझते रहते हैं।


आपातकाल का विरोध


आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले अनेक लोगों ने आजादी मिलने के बाद चैन की सांस ली कि अब अपना देश और अपने लोग हैं, जिनसे संघर्ष की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन देश में कुछ ऐसे लोग भी रहे, जिनका संघर्ष आजादी आने के बाद भी अनवरत जारी रहा। कृष्ण कुमार खन्ना उन्हीं योद्धाओं में से एक हैं। आपातकाल लागू होने का भी उन्होंने विरोध किया और सत्याग्रह करते हुए मेरठ के बाजारों में विरोध करने लगे। उन्होंने सदर बाजार मेरठ में निडरता के साथ घूमते हुए नारे लगाये, ‘इमरजेंसी तोड़ दो, देश के नेता छोड़ दो’। परिणामस्वरूप उन्हें और उनके लगभग पन्द्रह गांधीवादी सर्वोदयी साथियों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया।


सात दिन की सजा


फिलहाल हम खन्ना जी के जिस महत्वपूर्ण संघर्ष की बात हम कर रहे हैं, वह उनका न्यायालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के विरुद्ध संघर्ष है। वह बताते हैं कि, ‘1992 में हमें बहुत से लोगों ने बताया कि अदालतों में बहुत भ्रष्टाचार व्याप्त है, तारीख देने जैसे सामान्य कामों के लिए भी एक बड़ी रकम वसूल की जाती है और जज भी समय पर नहीं आते हैं। हमने विचार किया कि न्यायालयों के विरुद्ध आजाद देश में भी कोई आवाज़ नहीं उठाता है तो हमें ही यह आवाज़ उठानी चाहिए। यह निश्चित करके मेरठ के सर्वोदयी लोगों ने न्यायालयों में ढोल-मजीरे और घंटियाँ बजाकर कीर्तन करके उन लोगों का विरोध करना शुरू किया, जो समय से अपनी ड्यूटी पर नहीं आते थे।


एक दिन एक जज ने हमें पकड़वाया और सात दिन की सजा या 100 रूपये जुर्माने की सजा सुनायी। थोड़ी ही देर में जज साहब ने अपने चैम्बर में बुलाकर समझौते की बात की और आग्रह किया कि आप लोग जुर्माना भर दीजिये और बस इस बात को समाप्त कीजिये। हमने जवाब दिया कि ‘जुर्माना तो हमने कभी अंग्रेजों को भी नहीं दिया, सजा ही भुगती; अब भी सजा ही भुगतेंगे।’ मामला डिस्ट्रिक्ट जज के यहाँ पहुंचा तो उन्होंने कहा कि ये लोग ढोल भी बजाते हैं, इसलिए 7 दिन की सजा बहाल रहेगी। जेल से आकर सर्वोदयी लोगों ने फिर से अदालतों में कीर्तन शुरू कर दिया।


खन्ना जी और उनके गांधीवादी सर्वोदयी साथियों का यह संघर्ष लगातार चलता रहा तो सन् 2003-04 में फिर एक जिला जज ने इन गांधीवादी आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी करा दी। अब की बार गिरफ्तार सर्वोदयी साथियों में चार महिला सर्वोदयी भी थीं। यह मुकद्दमा सीजेएम के न्यायालय में शुरू हुआ। इस बार आन्दोलनकारियों ने कहा कि जिस जिला जज ने हमें गिरफ्तार कराया है, पहले उनका बयान हो कि हमारा गुनाह क्या है? तब हम कुछ बयान देंगे, मामला फंस गया। लगभग 5-7 दिन तक यही गहमागहमी चलती रही। फिर मेरठ के कई वकील खुद ही बिना फीस लिए इस केस को लड़ने के लिए आगे आ गये। लगभग 50 दिन तक हर दूसरे तीसरे दिन सुनवाई चली। इस बीच केस की सुनवाई कर रहे जज साहब एक दिन खुद लेट आये तो सर्वोदयी आन्दोलनकारियों ने भरी अदालत में जज के लेट आने पर ही सवाल खड़ा कर दिया, जिससे जज साहब सकते में आ गये। केस की लगातार सुनवाई से लग रहा था कि जैसे अदालत भी आन्दोलनकारियों से पीछा छुड़ाना चाहती थी। लगभग 50 दिन बाद सीजेएम ने फैसला सुनाया कि इन लोगों ने गुनाह तो किया है, लेकिन इन 50 दिनों को ही इनकी सजा मानकर बरी किया जाता है। केस के लगभग 2 महीने बाद इन सर्वोदयी लोगों को जेल भेजने वाले जिला जज को बर्खास्त कर दिया गया और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने खुद मेरठ आकर खन्ना जी और उनके सर्वोदयी साथियों से भेंट करके केस के विषय में बात की और बंद कमरे में स्वीकार किया कि हाँ, न्यायालयों में भ्रष्टाचार है।


गलत का विरोध


मेरठ के क्रान्तिकारी सर्वोदयी कृष्ण कुमार खन्ना आज 95 वर्ष की उम्र में भी हर बुधवार के दिन जिला जज की अदालत के बाहर अपना बैनर और तख्तियां लगाकर बैठते हैं और भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं। उन्होंने उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय और देश के प्रधानमंत्री तक को इस भ्रष्टाचार के बारे में पत्र लिखा है। मेरठ के यह सर्वोदयी नेता हजारों लोगों और खुद सर्वोदयी लोगों के लिए प्रेरणा पुंज हैं कि गलत काम का विरोध हमेशा जारी रहना चाहिए। खन्ना जी का यह संघर्ष लगातार जारी है।

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