पेसा कानून के 25 वर्ष : टूटे वायदों का अनटूटा इतिहास

रिपोर्ट

पेसा कानून बनने के बाद सभी 10 राज्यों को एक वर्ष के अंदर उन सभी कानूनों को संशोधित करना था, जो पेसा के अनुरूप नहीं थे। साथ ही सभी राज्यों को अपने यहां पेसा लागू करने के लिए नियमावली बनानी थी, लेकिन अफसोस, किसी भी राज्य ने अपने कानूनों को पेसा के अनुरूप नहीं किया।

नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया की तरफ से दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में 19 दिसंबर को उक्त विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में पांचवी अनुसूची के राज्यों सहित देश भर के 15 राज्यों छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, जम्मू व कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटका, गुजरात और तेलंगाना से 170 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की। सम्मेलन की शुरुआत में एलिन लाकड़ा ने प्रतिनिधियों का स्वागत किया।


डॉ जितेंद्र चाहर ने पेसा कानून के क्रियान्वयन के 25 वर्षों पर रोशनी डालते हुए कहा कि यह कानून जमीनी स्तर पर कितना लागू हो पाया, इस स्थिति को जानने-समझाने के लिए एक संयुक्त अध्ययन किया गया। ‘पेसा कानून के 25 वर्ष : पांचवी अनुसूची के राज्यों में क्रियान्वयन की समीक्षा’ नाम से एक पुस्तक तैयार की गयी। पुस्तक का परिचय देते हुए उन्होंने बताया कि पेसा कानून बनने के बाद सभी 10 राज्यों को एक वर्ष के अंदर उन सभी कानूनों को संशोधित करना था, जो पेसा के अनुरूप नहीं थे। साथ ही सभी राज्यों को अपने यहां पेसा लागू करने के लिए नियमावली बनानी थी, लेकिन अफसोस, किसी भी राज्य ने अपने कानूनों को पेसा के अनुरूप नहीं किया।

आज 25 साल बीत जाने के बाद जिन 8 राज्यों ने नियम बनाये हैं, वह भी पेसा कानून की मंशा और भावना के अनुरूप नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी दस राज्यों के पेसा नियमों और पेसा कानून की विसंगतियों का अपडेट इस पुस्तक में दिया गया है। दसों राज्यों से कुछ चुनिंदा जन संगठनों की केस स्टडीज भी दी गयी हैं। इन केस स्टडीज में पेसा कानून को धरातल पर लागू करने के प्रयास, उनकी सफलताओं और उनके सामने आने वाली चुनौतियों को रेखांकित किया गया है। पेसा कानून पर काम कर रहे बुद्धिजीवियों, संगठनों और ग्रामसभाओं के साथ किए गए साक्षात्कार, बैठकों और चर्चाओं से निकल कर आयी सिफारिशों को पुस्तक के अंत में शामिल किया गया है।

सत्यम श्रीवास्तव ने पेसा कानून की पृष्ठभूमि पर बात करते हुए कहा कि जिस दौर में पेसा कानून बनाया जा रहा था, उसी दौर में नव उदारवाद भी लागू किया जा रहा था, जहां एक तरफ सत्ता का विकेंद्रीकरण जैसे नारे दिए जा रहे थे, तो दूसरी तरफ संसाधनों पर नियंत्रण के लिए केंदीकरण की पुख्ता व्यवस्था की जा रही थी। इसलिए हमें इस सम्मेलन में इन सवालों पर भी विस्तार से चर्चा करने की जरुरत है। इस पुस्तक का विमोचन पूर्व कैबिनेट मंत्री मणिशंकर अय्यर, डॉ सुनीलम, अनिल चौधरी, सीआर बिजॉय, बिजय पांडा और दयामनी बरला ने किया।

पुस्तक विमोचन के बाद बिजय पांडा ने पेसा के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि पेसा कानून केवल पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में ही नहीं, पूरे भारत में लागू किया जाना चाहिए। स्थानीय स्व-शासन (डायरेक्ट डेमोक्रेसी) केवल आदिवासी समुदाय का मामला नहीं है, यह पूरे भारत का मामला है। ग्रामसभा के अधिकारों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पेसा की धारा 4-D के अनुसार ग्रामसभा को एक राज्य का दर्जा दिया गया है, जिसका एक निर्धारित क्षेत्र है और उसे दंड देने का अधिकार है, जो उसे एक राज्य के रूप में परिभाषित करता है।

आँध्र प्रदेश के वरिष्ठ शोधकर्ता सीआर बिजॉय ने कहा कि सरकार पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में पंचायती राज का विस्तार करना चाहती है, जिसके मायने आदिवासी स्वायत्तता को इनकार करना है।

पूर्व सांसद हन्नान मोल्ला ने कहा कि हमारी वर्तमान सरकार आदिवासी लोकतंत्र को नहीं मानती है। पंचायतीराज की ग्रामसभा और आदिवासी ग्रामसभा एक नहीं है। पेसा को लागू करने के लिए अधिकारियों को यह समझना होगा। आदिवासियों को अपनी लड़ाई ताकतवर तरीके से लड़नी होगी। एडवोकेट अनिल गर्ग ने कहा कि हमें यह सवाल करना चाहिए कि पांचवी अनुसूची वाले राज्यों के राज्यपालों ने पांचवी अनुसूची के प्रावधानों के तहत राज्य कानूनों में बदलाव क्यों नहीं किया, उनके अनुरूप नियमावली क्यों नहीं बनवाई और इसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को क्यों नहीं भेजी।
पूर्व पंचायती राजमंत्री मणिशंकर अय्यर ने कहा कि संविधान में राज्यों को जिम्मेदारी दी गयी है कि पेसा के अनुसार राज्यों के कानून बनाए जायें। अपने हक़ को पाने के लिए पेसा को ही हथियार बनाना होगा। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय ही देश में ऐसा समुदाय है, जिसमें सामूहिकता की भावना है। समाज को इससे सीखना चाहिए। आपको अपने अधिकार इस कानून के माध्यम से छीनने होंगे, लेकिन अहिंसा के रास्ते से ही। इसके लिए आपके लक्ष्य स्पष्ट होने चाहिए।

सम्मेलन के अंतिम सत्र में वक्ताओं ने आगे की रणनीति पर चर्चा की। राष्ट्रीय स्तर पर पांचवीं अनुसूची के राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए एक राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया, तय किया गया कि समिति द्वारा एक प्रस्ताव बनाकर राज्यों को भेजा जाय, उस प्रस्ताव पर सभी ग्रामसभाएं प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल और राष्ट्रपति को 26 जनवरी 2023 को भेजें, राज्य स्तर पर कार्यक्रम तय कर प्रत्येक राज्य में 6 महीने में राज्य सम्मेलन किया जाय, पेसा को लागू करने के लिए दिल्ली में रैली की जाय और राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया जाय। अंत में श्वेता त्रिपाठी ने सम्मेलन में आये सभी प्रतिनिधियों को धन्यवाद देते हुए राष्ट्रीय सम्मेलन की समाप्ति की घोषणा की।

– जितेन्द्र

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