वन विभाग काटने जा रहा है 15064 पेड़!

पलामू व्याघ्र परियोजना के कोर एरिया का मामला

यह तो नहीं पता कि और कितने गाँवों को इस व्याघ्र परियोजना के कोर एरिया में शामिल किया जाएगा, कितने और गाँवों को विस्थापित किया जाएगा, कितने और वनों और पेड़ों को नष्ट किया जाएगा, पर इतना पता है कि यह सिलसिला अगर अब भी नहीं थमा तो शायद बचाने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा।

क्या आपने मौसम परिवर्तन को महसूस किया है? शायद आपने ग़ौर किया होगा कि वर्ष दर वर्ष गर्मी का भीषण ताप बढ़ता जा रहां है। हर साल, तापमान के कई रिकॉर्ड टूट रहे हैं। बारिश की अनियमतता से सभी भली भाँति परिचित हैं ही। झारखंड की अधिकांश खेती आज भी मौसम पर ही निर्भर करती है, ऐसे में बारिश का कम या ज़्यादा होना आर्थिक स्तर पर गरीब किसानों की कमर तोड़ कर रख देता है। वैज्ञानिक आधार पर देखा जाय तो इस परिवर्तन के कई कारण सामने आए हैं, जिनमें एक मूल कारण पेड़ों तथा जंगलों का लगातार नष्ट होते जाना है। इस संदर्भ में राज्य एवं केंद्र सरकार, दोनों की ज़िम्मेदारी बनती है कि प्रकृति के इस विनाश पर रोक लगायी जाय। अगर ज़मीनी स्तर पर सरकारी तंत्र की बात की जाय, तो यह ज़िम्मेदारी वन विभाग की है (वनाधिकार क़ानून-2006 के बाद ये ज़िम्मेदारी मुख्यतः वन क्षेत्रों में बसे ग्रामीणों की भी है)। वन क्षेत्र में रह रहा कोई भी परिवार इस बात की गवाही दे सकता है कि अगर किसी वन अधिकारी ने उन्हें वन से चूल्हा जलाने के लिए भी कुछ लकड़ियां लाते देख लिया तो उन पर शामत आ जाएगी।

पलामू व्याघ्र परियोजना के कोर एरिया में बसे आठ वन गाँवों- लाटू, कुजरूम, रमनदाग, हेनार, विजयपुर, पंडरा, गुटवा और गोपखार के बाशिंदों को वन विभाग विस्थापित एवं पुनर्वासित करना चाहता है। अनेक विफल प्रयासों के बाद, वन विभाग राज्य सरकार के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत करता है, जिसके तहत इन ग्रामीणों का लाई एवं पैलापत्थल गाँवों में पुनर्वास कराना है। लाई एवं पैलापत्थल, ये दोनों गाँव रिजर्व फ़ॉरेस्ट क्षेत्र में आते हैं और यह पूरा इलाक़ा ईको-सेन्सिटिव ज़ोन का हिस्सा है। इस आबादी के पुनर्वास के लिए वन विभाग ने लाई और पैलापत्थल में कुल 410.18 एकड़ भूमि उपलब्ध कराई है। इस उपलब्ध भूमि पर पेड़ों की कुल संख्या 52876 है, जिनमें मुख्यतः साखू एवं महुआ के पेड़ शामिल हैं। वन विभाग के औपचारिक आवेदन में इनमें से कुल 15064 पेड़ों को काटे जाने का प्रस्ताव है।

तो क्या है इन 15064 पेड़ों की कीमत? इनकी कीमत यह है कि अपने भविष्य, अपनी भावी पीढ़ी और अपनी प्रकृति को हम निस्संदेह दांव पर लगा रहे हैं। सवाल यहाँ यह नहीं है कि क्या वन विभाग ऐसा कर सकता है, क्योंकि न्यायिक दृष्टि से वन विभाग राज्य एवं केंद्र सरकारों की अनुमति के उपरांत ऐसा बिलकुल कर सकता है। सवाल यह है कि क्या वन विभाग को ऐसा करना चाहिए, क्या हम और आप इस बाबत कुछ कर सकते हैं?

मैं आपके सामने दो सूचनाएं रखूँगा कि क्यों वन विभाग को ऐसा नहीं करना चाहिए। पहला, इन पेड़ों का नाश एक ऐसा सिलसिला है, जो लगातार चला आ रहा है और अगर इसे रोका नहीं गया तो यह अभी न जाने कबतक यूँही चलता रहेगा। अगर आप वन विभाग के आपसी पत्राचार के तर्कों को पढ़ें तो उन पत्रों में यह लिखा मिलेगा कि – पहले भी विकास कार्यों के लिए पेड़ों को काटा जाता रहा है, अतः अब इस पर रोक लगाने का कोई तर्क नहीं है। दूसरा, इस सिलसिले से कोई नहीं छूटेगा, सभी प्रभावित होंगे, सभी जोड़े जाएँगे। अगर आप वन विभाग के 2-3 वर्ष पूर्व के विस्थापन-पुनर्वास प्रस्तावों को देखेंगे तो पाएंगे कि लाई और पैलापत्थल के अलावा विस्थापित होने वाले इन ग्रामीणों को जिन गाँवों में बसाया जाना है, पहले उनमें पोलपोल गाँव का नाम भी शामिल था। लेकिन किन्हीं कारणों से यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। अब 2022 में वन विभाग द्वारा एक और आवेदन दिया गया है, जिसमें पलामू व्याघ्र परियोजना क्षेत्र में स्थित पोलपोल सहित पांच अन्य गाँवों- तनवई, नवरनागो, चपिया एवं टोटकी को भी गढ़वा वन क्षेत्र में विस्थापित एवं पुनर्वासित कराने का प्रस्ताव है। अब ये तो नहीं पता कि और कितने गाँवों को इस व्याघ्र परियोजना के कोर एरिया में शामिल किया जाएगा, कितने और गाँवों को विस्थापित किया जाएगा, कितने और वनों और पेड़ों को नष्ट किया जाएगा, पर इतना पता है कि यह सिलसिला अब भी नहीं थमा तो शायद बचाने के लिए कुछ बचा ही नहीं रहेगा।

-जेरोल्ड जेरम कुजूर

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