मुझे स्वयं को शून्य स्तर तक ले आना चाहिएI मनुष्य जब तक स्वेच्छापूर्वक अपने को सजातीयों में अन्तिम के रूप में नहीं रखता, तब तक उसकी मुक्ति सम्भव नहीं हैI यदि हम धर्म, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि से ‘मैं’ और ‘मेरा’ समाप्त कर दें, तो हम शीघ्र स्वतंत्र होंगे तथा पृथ्वी […]
Month: May 2022
अभी सरकार द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, जिसके तहत प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 75 नए तालाब खोदे और बनाये जाने का शंखनाद हुआ है। दूसरी तरफ असि नदी को उसकी तलहटी तक पाटा और बेचा जा रहा है। खुल्लम खुल्ला उसकी कोख में पत्थर […]
कुछ दशकों में जल स्रोतों पर हुए अवैध कब्जे के कारण प्रायः इनका अस्तित्व ही संकट में है. तालाब और उसके आसपास की भूमि पर अवैध अतिक्रमण और निर्माण के चलते मानसून काल में भी अधिकांश तालाब पूरे भर नही पाते. पहले जब ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के घर कच्चे […]
ग्लोबल वार्मिंग जंगलों का विनाश राष्ट्रों के लिए तथा मानव जाति के लिए सबसे खतरनाक है। समाज का कल्याण वनस्पतियों पर निर्भर है और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषण और वनस्पति के विनाश के कारण राष्ट्र को बर्बाद करने वाली अनेक बीमारियां पैदा हो जाती है। तब चिकित्सीय वनस्पति की प्रकृति […]
प्रेस की आजादी और लोकतंत्र बीबीसी ने फाकलैंड युद्ध के दौरान अपने देश की गलतियों को भी उजागर किया था। भारत में दूरदर्शन और आकाशवाणी से भी ऐसी ही उम्मीद थी, पर इसमें न कांग्रेस की रुचि थी, न भाजपा और अन्य दलों की। इसके बदले निजी चैनलों को बढ़ावा […]
गांधी जी के लिए पत्रकारिता एक मिशन था, वे विज्ञापन करने में विश्वास नहीं रखते थे और जनता को अपने अखबार का पार्टनर समझते थे. मौजूदा दौर में जहाँ मीडिया सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करता हुआ दिखता है, वही गाँधी जी के लिए पत्रकारिता एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का माध्यम थी. अखबार […]
जमात का स्वार्थ एक भयानक बात है। आज विज्ञान के कारण एक जमात, एक व्यक्ति के बराबर हो गयी है। कल ऐसा समय भी आयेगा कि पृथ्वी के लोगों को मंगल के लोगों की चिंता करना पड़ेगी और मंगल के लोगों को पृथ्वी के लोगों की। एक-एक जमात, एक-एक पंथ, […]
आने वाला तंत्रज्ञान सिर्फ आर्थिक सवाल नहीं पैदा कर रहा है, वह पूरी संस्कृति, सभ्यता तथा कुटुम्ब व्यवस्था बदल रहा है। उसका असर नाट्य, शिल्प, चित्र और भाषा जैसे अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों पर होने वाला है। मानव से श्रम और बुद्धि छीनकर उसे सिर्फ उपभोक्ता बनाने का विचार रखकर […]
पहले जब यह उद्योग आयात और मशीन से बचा हुआ था, तो इसमें कॉटेज उद्योग के चरित्र थे, ह्यूमन इंटेंसिविटी ज्यादा थी, तब विकेंद्रीकरण था और अब बड़ी बड़ी पूंजी है, औटोमेशन है, मार्केटिंग के एक से एक इंतजामात हैं। पहले जब यह उद्योग अनऑर्गनाइज्ड था, तब सरकार की जीएसटी, […]
सरकार ने जो गाइडलाइन प्रस्तावित की है, उसमें व्यवस्था है कि ऐसे मामलों में कार्रवाई से पहले पुलिस अधीक्षक स्तर का एक अधिकारी मामले की जांच कर ले कि वास्तव में राजद्रोह का मामला बनता है या नहीं. लेकिन यह व्यावहारिक रूप में निरर्थक है. पुलिस अधीक्षक तो उसी सरकार […]