सभी को देखने में लगता है कि हम पैदल चलते हैं, पर ऐसा नहीं है। हम जनता के सेवक है, जनता के मन पर आरूढ़ होकर चलते हैं। जितनी गति मन की है, उतनी और किस वाहन की हो सकती है?
जनशक्ति को जागृत करके समाज में परिवर्तन लाना है। लोग चाहते हैं कि समाज में ये जो लेने की हवा चल रही है, उसकी जगह देने की हवा चले। हर कोई यह महसूस करे कि अपने बीच के भूमिहीन और भूखे पड़ोसियों की चिंता करते हुए उनको जमीन देना हमारा प्रथम कर्तव्य होना चाहिए। सरकार की परती जमीन तो कभी भी बंट जायेगी, वह तो सुरक्षित ही है। लेकिन पहले हमें जनता का पुरुषार्थ देखना है। बाबा पैदल ही घूमते थे, इसके बारे में वे कहा करते थे कि अगर बाबा हवाई जहाज में घूमता तो उसका काम भी हवा हवाई ही होता। भूदान यज्ञ आज पैदल चलने के कारण जमीन में गहरा ही होता जा रहा है। हवाई जहाज की यात्रा हमें मानपत्र जरूर दिलाती है, पर उससे दानपत्र नहीं मिलते। अगर सत्य का शोधन करना है, किस काम से अहिंसा आचरण में ढलेगी, इस पर चिंतन करना है, तो खुली हवा और मुक्त आकाश के नीचे घूमना चाहिए। यह तो वेद में भी कहा है कि जो चलता है, वह कृतयुग में रहता है-कृतम संपद्यते चरन।
अगर सत्य का शोधन करना है, किस काम से अहिंसा आचरण में ढलेगी, इस पर चिंतन करना है, तो खुली हवा और मुक्त आकाश के नीचे घूमना चाहिए। यह तो वेद में भी कहा है कि जो चलता है, वह कृतयुग में रहता है-कृतम संपद्यते चरन।
हवाई यात्रा हमको शहरों तक पहुंचा सकती है, देश के हृदय तक नहीं पहुंचा पाती। क्योंकि शहरों में दिमाग बसता है, जबकि दिल तो गांवों में ही बसता है। अगर जनता के मन में विचार को बैठाना है, तो मोटरकार की भी यात्रा छोड़नी पड़ेगी। पैदल चलने से मेरे हाथ में एक नया शस्त्र आया है। पुराने जमाने में जो लोग पैदल घूमते थे, वह तो लाचारी का घूमना था, जबकि आज का घूमना गतिमान रहना यानी डायनामिक होना है, अगतिक अर्थात स्टेटिक होना नहीं। सभी को देखने में लगता है कि हम पैदल चलते हैं, पर ऐसा नहीं है। हम जनता के सेवक है, जनता के मन पर आरूढ़ होकर चलते हैं। जितनी गति मन की है, उतनी और किस वाहन की हो सकती है?