बाबा का कहना था कि ग्रामोद्योगों से आप कहते हैं वे अपने पैरों पर खड़े रहें। यह तो वही बात हुई कि आप मेरी टांगें तोड़ देते हैं और फिर टांगों पर खड़े रहने को भी कहते हैं। आप शाबाशी दें कि फिर भी हम हाथों के बल चल कर […]

राजनीति की प्रक्रिया ऊपर से नीचे जाने की है, जबकि लोकनीति की प्रक्रिया नीचे से ऊपर जाने की  है। राजनीति में सारी सत्ता केंद्र में होती है, लोकनीति में वही सत्ता गांव-गांव में होती है। वैसे तो सर्वोदय सर्वव्यापी है, वह राजनीति से अलग नहीं है, लेकिन सर्वोदय की अपनी […]

बाबा ने सभी से कहा कि आपने बहुत शौर्य दिखाया, अब अक्ल भी दिखानी चाहिए। यह काम मानव को करना ही न पड़े, यह अक्ल अब सूझनी चाहिए। सबको मिलकर इसका उपाय ढूंढना चाहिए कि मेहतर को भी यह काम न करना पड़े, तभी भंगीमुक्ति का कार्य हो सकेगा। बाबा […]

गोपीनाथ नायर ने जीवन भर गांधीवादी सिद्धांतों को जिया। उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था और आचार्य विनोबा भावे के साथ भूदान और ग्रामदान आंदोलन में भी काम किया था। सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष, गांधीवादी विचारक, स्वतंत्रता सेनानी और पद्म श्री से सम्मानित पी […]

न्याय का नैसर्गिक आदर्श कहता है कि कोई दोषी छूटना नहीं चाहिए और किसी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए. किसी का किसी पीड़ित की मदद करना किसी मामले को खींचना किस प्रकार हुआ, यह सवाल देश में ही नहीं, दुनिया के अनेक सामाजिक मोर्चों पर जेरे बहस है 27 […]

बहुत से लोग बाबा से सवाल पूछते थे कि अहिंसा क्या मानव तक ही सीमित है। बाबा कहते थे कि मनुष्य को अपनी चित्तशुद्धि के लिए मांसाहार छोड़ देना चाहिए। अगर आप दुनिया में शांति चाहते हैं, तो प्राणियों का आहार आपको छोड़ना पड़ेगा। यह कहते हुए बाब कहा करते […]

अगर हम देश का संरक्षण सशस्त्र सेनाओं पर छोड़ दे रहे हैं और शांति सेना का काम नहीं कर रहे हैं तो सर्वोदय और अहिंसा की आबरू खतरे में है, इसीलिए बाबा आजकल शांतिसेना की बात पर अधिक जोर देने लगे हैं. अक्सर माना गया है कि बीमारी में अगर मनुष्य […]

बाबा को भिक्षा मांगने की आदत नहीं। बाबा तो सभी को दीक्षा देने आया है। काहे की दीक्षा! प्रेम जीवन की दीक्षा। सारा गांव एक परिवार बनकर रहे। जमीन सबके लिए है, उसको सबके पास पहुंचाए। बाबा अभी तक भूमिदान लेते थे, लेकिन अब संपत्तिदान भी लेने लगे। संपत्ति में […]

बाबा विनोबा भूदान के काम को राष्ट्रीय आंदोलन नहीं, बल्कि जागतिक आंदोलन मानते थे। आंदोलन से भी आगे बढ़कर इसे आरोहण मानते थे. आरोहण में हम एक एक शिखर चढ़ने की कोशिश करते हैं। वही इसमें भी हो रहा है। बाबा विनोबा का मानना था कि मुझे भय नहीं, निर्भयता […]

जमीन के वितरण से लेकर भगवद्भक्ति तक का पंचविध कार्यक्रम सच्चे अर्थों में ग्रामराज्य, रामराज्य, लोकराज्य या स्वराज्य का स्वरूप होगा।  दुनिया तृषित होकर शांति की तीव्र खोज में है। सबसे पहले अधिष्ठान को लें तो भूमि अधिष्ठान है, जिसका विषम बंटवारा ही समाज रचना की सारी अच्छाइयों को नष्ट कर रहा है। ऐसे […]

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