नहीं रहे किशोर भाई

किशोर भाई चलते-फिरते चले गए। बिना किसी शोर-शराबे के। बिना किसी डॉक्टर और अस्पताल का दरवाजा खटखटाये। आज 27 नवम्बर की सुबह भोर में उन्हें साइलेंट अटैक आया और वे पूरी शांति के साथ अंतिम यात्रा पर निकल गए। उन्होंने 76 वर्षों का सार्थक जीवन जिया। वे पूरी तरह निस्पृह साधक थे। अपनी आखिरी शाम तक उन्होंने सबसे यही कहा कि वे ठीक हैं। संभवत वे बीमार बनकर दुनिया से विदाई नहीं चाहते थे, इसीलिए स्वस्थ तन-मन के साथ चुपचाप चले गए। कहते हैं योग उम्र को नहीं, जीवन को साधता है। जब तक जियो, निरोग और क्रियाशील रहकर जियो। किशोर भाई ने अपने मनीषियों के इस मन्त्र को अपने जीवन में चरितार्थ किया ।
 

वे प्रतिबद्ध सर्वोदय सेवक थे । विनोबा के भूदान, ग्रामदान और जेपी की संपूर्ण क्रांति के अग्रिम पंक्ति के सिपाही थे, छात्र युवा संघर्ष वाहिनी, मध्य प्रदेश के संयोजक रहे और विनोबा द्वारा इंदौर में स्थापित विसर्जन आश्रम के प्रभारी भी रहे। वे जो भी रहे, जहाँ भी रहे, हर दिल अजीज़ रहे. बाद के दिनों में उन्होंने शिक्षा और योग पर ध्यान केंद्रित किया। जीवनशाला और योग प्रशिक्षण उनके उत्तरार्ध जीवन के प्रमुख अभियान थे। योग में वे इतने तन्मय हुए कि लोग उन्हें योगाचार्य कहने लगे। उनसे मेरी पहली मुलाकात विसर्जन आश्रम इंदौर में हुई थी, तब मानव मुनि एवं किशोर भाई की जोड़ी विसर्जन आश्रम का प्रबंधन देखती थी। उन दिनों यह आश्रम इंदौर एवं मालवा अंचल की सर्वोदय सहित सभी सामाजिक गतिविधियों का केंद्र था। हमने वहां कई युवा प्रशिक्षण शिविर चलाए। उन्होंने हर गतिविधि में आगे बढ़कर हमें सहयोग दिया, लेकिन आगे बढ़कर कभी लीडरशिप नहीं ली। हमेशा यही कहा कि नौजवानों को ही आगे रहना होगा।

किशोर भाई सर्वोदय के उन साथियों में थे, जो नए लोगों और नई गतिविधियों को जोड़ने एवं आगे बढ़ाने में व्यक्तिगत स्तर पर रुचि लेते थे। सर्वोदय परिवार और खासकर सर्वोदय की नई पीढ़ी उन्हें बहुत याद करेगी। उनका जाना हम सबके लिए एक ऐसे बुज़ुर्ग का जाना है, जिसकी भरपाई अब कभी नहीं हो सकेगी। उनका भौतिक शरीर तो पंचतत्वों में विलीन हो जाएगा, लेकिन वे रहेंगे हमारे बीच, हमारी स्मृतियों में, उन सब गतिविधियों के बीच, जिन्हें उन्होंने चलाया और आगे बढ़ाया। दुःख की इस बेला में हम उनके शोकाकुल परिवार के साथ हैं। किशोर भाई का वृहत्तर सर्वोदय परिवार भी आज भुत शोकाकुल है. उनको हमारी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि!

                                                                                                       -संतोष कुमार द्विवेदी

 

 

Co Editor Sarvodaya Jagat

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