बा और बापूप्रज्ञा और श्रद्धा का सहजीवन

22 फरवरी कस्तूरबा पुण्यतिथि

बापू के सहजीवन के प्रखर नाटक की शांत नायिका के रूप में कस्तूरबा अपने पति के साथ कारावास में गयीं, तीन-तीन सप्ताहों के अनशनों में पति के साथ स्वयं भी उपवास करती रहीं और पति की अनंत जिम्मेदारियों में अपने हिस्से की जिम्मेदारियां संभालती रहीं।

गांधी जी ने अपने वैवाहिक जीवन के काफी प्रारंभ में ही अपरिग्रह व्रत ले लिया था। वार्षिक 60 हजार रुपये से अधिक आय देने वाली वकालत छोड़कर उन्होंने अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बांट दी। श्रीयुक्तेश्वर जी संसार-त्याग की सामान्यत: देखने में आने वाली अल्प धारणाओं पर कभी-कभी व्यंग्य किया करते थे। वे कहते थे, ‘‘भिखारी संपत्ति का त्याग नहीं कर सकता। यदि कोई मनुष्य विलाप करता है कि मेरा धंधा डूब गया, पत्नी मुझे छोड़कर चली गयी; अब मैं संसार त्याग कर आश्रम में चला जाता हूं, तो किस संसार-त्याग की वह बात कर रहा है? उसने किसी संपत्ति और प्रेम का त्याग नहीं किया; संपत्ति और प्रेम ने उसका त्याग कर दिया।’’


दूसरी ओर गांधी जी जैसे संतों ने केवल भौतिक संपत्तियों का ही प्रत्यक्ष त्याग नहीं किया, बल्कि उससे भी कठिन निजी लक्ष्य प्राप्ति और स्वार्थी उद्देश्यों का त्याग भी कर दिया और अपने अस्तित्व के गहनतम हिस्सों को भी सारी मानव जाति को एक ही धारा मानकर उसमें विलीन कर दिया। महात्मा जी की असाधारण धर्मपत्नी कस्तूरबा ने कभी कोई आपत्ति प्रकट नहीं की कि उन्होंने उनके लिए या उनके बच्चों के लिए कुछ बचाकर नहीं रखा। गांधी जी का विवाह किशोरावस्था में ही हो गया था। चार पुत्रों को जन्म देने के बाद उन्होंने और उनकी धर्मपत्नी ने ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया। उनके सहजीवन के प्रखर नाटक की शांत नायिका के रूप में कस्तूरबा अपने पति के साथ कारावास में गयीं, तीन-तीन सप्ताहों के अनशनों में पति के साथ स्वयं भी उपवास करती रहीं और पति की अनंत जिम्मेदारियों में अपने हिस्से की जिम्मेदारियां संभालती रहीं। गांधी जी के प्रति उन्होंने अपनी श्रद्धा इन शब्दों में व्यक्त की है –


मैं आपकी आभारी हूं कि आपकी जीवनसंगिनी एवं सहधर्मिणी बनने का सौभग्य मुझे प्राप्त हुआ। मैं आपकी आभारी हूं संसार में सर्वश्रेष्ठ विवाह बंधन के लिए, जो विषयभोग पर नहीं, बल्कि ब्रह्मचर्य पर आधारित है। मैं आपकी आभारी हूं कि आप उन पतियों में से एक नहीं बने, जो जुआ, घुड़दौड़, सुरा, सुंदरी और गाने-बजाने में अपना समय नष्ट कर देते हैं और अपनी पत्नी एवं बच्चों से इस प्रकार ऊब जाते हैं, जैसे कोई बच्चा अपने खिलौनों से जल्दी ही ऊब जाता है। मैं अत्यंत कृतज्ञ हूं कि आप वैसे पतियों में नहीं हैं, जो दूसरों के परिश्रम के बल पर, उनका शोषण कर धनवान बनने में अपना समय लगा देते हैं।


मैं नितांत कृतज्ञ हूं कि आपने रिश्वत से अधिक महत्त्व ईश्वर और देश को दिया, कि अपनी धारणाओं के अनुसार अपना जीवन जीने का साहस आप में था, कि ईश्वर में आपका पूर्ण विश्वास था। असीम कृतज्ञ हूं मैं ऐसे पति को पाकर, जिसने ईश्वर और अपने देश को मुझसे अधिक महत्त्व दिया। मेरे और मेरी युवावस्था की त्रुटियों के प्रति, आपने जब समृद्धि का जीवन त्याग कर अपरिग्रह के जीवन को अपनाया, तब मैंने आपका जो विरोध किया और विद्रोह पर उतर आयी, उस सबके प्रति आपने जो सहनशीलता का रुख अपनाया, उसके लिए मैं आपकी आभारी हूं।


बचपन में मैं आपके माता-पिता के घर में रही। आपकी मां बहुत अच्छी और महान महिला थीं। उन्होंने मुझे बाहदुर और साहसी पत्नी बनना सिखाया और यह भी सिखाया कि मैं उनके पुत्र, अर्थात अपने भावी पति के प्रेम और आदर की पात्र कैसे बन सकती हूं। जब वर्ष पर वर्ष बीतते गये और आप भारत के सबसे प्रिय नेता बन गये, तब सफलता की सीढ़ी चढ़ने वाले पुरुष की पत्नी के मन में उठने वाला वह भय मेरे मन में कभी नहीं उठा कि मैं एक ओर फेंक दी जाऊंगी, जैसा कि अन्य देशों में प्राय: होता है। मैं जानती थी कि जब मृत्यु आयेगी, तब भी हम पति-पत्नी ही होंगे।


अनेक वर्षों तक कस्तूरबा उन जन-निधियों के कोषपाल का काम करती रहीं, जिन्हें महात्मा जी लाखों में जमा करते थे। भारत के घरों में बड़ी मजेदार कहानियां बतायी जाती हैं कि गांधी जी की सभाओं में महिलाओं के आभूषण पहनकर जाने को लेकर पति लोग बहुत चिंतित रहते हैं, क्योंकि पददलितों की वकालत करने वाले गांधी जी की जादुई वाणी सोने के कंगनों और हीरे के हारों पर अपना जादू चलाकर उन्हें अपने आप हाथों और कंठों से निकालकर दानपात्र में जमा करवा देती है!


एक दिन जन-निधि कोषपाल कस्तूरबा चार रुपये के खर्च का हिसाब नहीं दे सकीं। गांधी जी ने आय-व्यय विवरण प्रकाशित कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी की चार रुपये की विसंगति को निष्ठुरतापूर्वक स्पष्ट दर्शाया।


अमेरिका में अपने शिक्षावर्गों में यह कहानी मैं प्राय: सुनाया करता था। एक दिन हॉल में उपस्थित एक महिला क्रोध से भड़क उठी।


‘‘महात्मा हो या कोई और, यदि वे मेरे पति होते तो इस तरह के अनावश्यक सार्वजनिक अपमान के लिए ऐसी खबर लेती कि उन्हें छठी का दूध याद आ जाता।’’


थोड़ी देर तक हम दोनों के बीच अमेरिकी पत्नियों और भारतीय पत्नियों के विषय में हास्य-विनोद भरा वाग्युद्ध चलता रहा। तत्पश्चात मैंने पूरी तरह से बात समझायी।


मैंने कहा, ‘कस्तूरबा महात्मा गांधी को अपना पति नहीं, बल्कि अपना गुरु मानती हैं, जिसे छोटी-सी भूल के लिए भी कड़ी फटकार लगाने का अधिकार होता है। कस्तूरबा को इस तरह सार्वजनिक फटकार लगाने के कुछ समय बाद गांधी जी को एक राजनैतिक आरोप में कारावास की सजा हो गयी। जब वे शांत भाव से अपनी पत्नी से विदा ले रहे थे, तब वे उनके पैरों में गिर पड़ीं और विनम्रता के साथ हाथ जोड़ कर बोलीं, ‘गुरुदेव, यदि मैंने आपका मन दुखाया है, तो मुझे क्षमा कीजिये।’

-परमहंस योगानन्द

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