छत्तीसगढ़ में जनसंघर्षों का राज्य सम्मेलन

जल-जंगल-ज़मीन की कोर्पोरेट लूट, दमन और विस्थापन के खिलाफ एक आयोजन

28 जून को रायपुर में भूमि अधिकार आंदोलन एवं छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के बैनर तले जल-जंगल-ज़मीन की कॉर्पोरेट लूट, दमन और विस्थापन के खिलाफ जनसंघर्षों का एक दिवसीय राज्य सम्मेलन संपन्न हुआ। सम्मेलन में आए वक्ताओं ने देश में जल-जंगल-ज़मीन और जनतंत्र की कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ एकजुट होने की अपील की। सम्मेलन में देश भर के 15 राज्यों से 500 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की। सम्मेलन की शुरुआत में संजय पराते ने प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज देश में राज्य व्यवस्था जहाँ एक तरफ सांप्रदायिकता, धार्मिक विभेदीकरण जैसे मुद्दे पर चुप्पी लगाए हुए है, वहीं दूसरी तरफ कॉर्पोरेट लूट को सुगम बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। ऐसे समय में जनांदोलनों का महत्व और भी बढ़ जाता है।

हन्नन मोल्लाह ने कहा कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ शुरू किए गए भूमि अधिकार आंदोलन को और तेज़ करने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून-2013 को लेकर भ्रम की स्थिति फैलाई जा रही है। केंद्र द्वारा अध्यादेश वापस लेने के बावजूद राज्यों में भूमि अधिग्रहण कानून-2013 के प्रावधान लागू नहीं हो रहे हैं। राज्य सरकारें मनमाने ढंग से भूमि अधिग्रहण कर रही हैं। इन्हीं सरकारी नीतियों के खिलाफ इस आंदोलन की शुरुआत की गई है। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के बाद छत्तीसगढ़ राज्य में चल रहे जनसंघर्षों से आए प्रतिनिधियों ने अपने-अपने क्षेत्र में चल रहे आंदोलनों का विस्तृत ब्योरा रखा। छत्तीसगढ़ के बाद बाहर के राज्यों से आये जन संघर्षों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने प्रदेशों में जन आंदोलनों की स्थिति पर ब्योरा रखा।
इस सत्र में सबसे पहले प्रफुल्ल सामंत्रा ने बताया कि आज देश में संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, जो लोग अधिकारों की वकालत कर रहे हैं, उन्हें जेल में डाला जा रहा है तथा जो लोग विभाजनकारी कार्य में लगे हैं, उनका सम्मान किया जा रहा है। जिस तरह के हालात छत्तीसगढ़ में हैं, उसी तरह के हालात ओड़िशा में बने हुए हैं. पोस्को, हिंडाल्को बॉक्साइट, सुंदरगढ़ और खंडवामाली पर्वत को बचाने के आन्दोलनों में हम इसे देख सकते हैं। उड़ीसा सरकार ने परियोजना समर्थकों को भी पुलिस-प्रशासन के साथ मिलाकर प्राकृतिक संसाधनों की लड़ाई लड़ रहे लोगों के सामने खड़ा कर दिया है, जो चिंताजनक बात है। इन स्थितियों से निपटने के लिए व्यापक एकता की ज़रूरत है, नहीं तो राजसत्ता, जन आवाज़ को कुचलने में सफल हो जायेगी।


मुजाहिद नफीस ने बताया कि देश की तमाम सरकारें नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के मुकाबले कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही हैं, जिसके चलते देश के जल, जंगल, ज़मीन और पर्यावरण को खुलेआम कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए बेचा जा रहा है। सभी को मिलकर इस कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ, जनतंत्र को बचाने के लिए सड़कों पर आना होगा, तभी सही मायनों में संविधान का सपना साकार होगा। विजय पांडा ने कहा कि पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभाओं के प्रस्तावों की अवहेलना करते हुए सरकार द्वारा आदिवासियों के जल-जंगल-ज़मीन पर कार्पोरेट घरानों को कब्ज़ा कराया जा रहा है। पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ज़मीन संबधी सारे निर्णय ग्राम सभा के अधिकार में हैं, तो राज्य और केंद्र सरकार ज़मीन संबंधी निर्णय किस अधिकार के तहत ले रही है? देश के सभी आदिवासी संगठनों को एकजुट होकर ताकतवर आंदोलन खड़ा करना होगा। मनीष श्रीवास्तव ने कॉर्पोरेट हितों के साथ खड़ी सरकारों के बरक्स साझा संघर्षों को साथ लाने के प्रयासों को आगे बढ़ाने और भूमि अधिकार पर पुरज़ोर संघर्षों को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया। प्रतिभा शिंदे ने कहा कि आज देश की सभी सरकारें कार्पोरेट घरानों की गुलामी में लगी हुई हैं। अडानी-अम्बानी के दोस्त जब से प्रधानमंत्री बने हैं, तब से प्राकृतिक संसाधनों की लूट बेतहाशा बढ़ गयी है।

डॉ सुनीलम ने बताया कि मध्य प्रदेश में भी जबरन लोगों को विस्थापित किया जा रहा है। पुनर्वास संबंधी कोई भी नीति या उच्च न्यायालय के किसी भी आदेश का मध्य प्रदेश में पालन नहीं किया जा रहा है। किसान आंदोलन में सक्रिय नेताओं को मुकदमों के माध्यम से डराया जा रहा है। इस सम्मेलन का उद्देश्य छत्तीसगढ़ में चल रहे संघर्षों को मजबूती देना है तथा उन्हें यह आश्वस्त करना है कि उनके ज़मीनी संघर्ष में देश भर के जनसंघर्षों के साथी साथ देंगे। मेधा पाटकर ने कहा कि छत्तीसगढ़ में असंवैधानिक रूप से ज़मीन हड़पने की कोशिश हो रही है, जिसका विरोध समाज का एक व्यापक हिस्सा कर रहा है। आज आधुनिकता के नाम पर देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में प्राकृतिक संसाधनों को लूटा जा रहा है। यह आर्थिक शोषण का दौर है जो जीवन के अधिकार का हनन कर रहा है। आज राज्य सरकारें एक कागज़ के नोट के आधार पर कंपनियों को जमीनें दे रही हैं। हम सब लोग मिल कर नहीं लड़ेंगे तो न हम बचेंगे और न समाज बचेगा। इस संदेश को गाँव-गाँव तक पहुँचाना होगा।

उल्का महाजन ने कहा कि यह लड़ाई किसी एक प्रदेश या किसी एक समुदाय की नहीं है। यह पूरे देश की आबोहवा और पर्यावरण को बचाने की लड़ाई है, जिसे हर हाल में जीतना ही होगा। आज बाज़ार का दौर है इसलिए हमें यह घोषणा करनी होगी कि हमारे जंगल, हमारी ज़मीन, हमारा पानी बिकाऊ नहीं है। इस पर हमारा अस्तित्व टिका हुआ है, इसलिए यह मुनाफे की वस्तु नहीं है, हम इसे आजीविका के साधन के तौर पर देखते हैं। आज सरकारें भय, भूख और भ्रम को हथियार के रूप में प्रयोग कर रही हैं। इसके खिलाफ भी हमें ताकतवर तरीके से लड़ना होगा। सम्मेलन के अंत में अलोक शुक्ला ने एक प्रस्ताव पेश किया गया, जिसे प्रतिनिधियों ने सर्व सहमति से पास कर दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

हल्द्वानी से देहरादून तक; सफल रही राष्ट्रीय सद्भावना यात्रा

Thu Jul 28 , 2022
उत्तराखंड का जनमानस अपने परम्परागत सद्भाव और भाईचारे की मिसाल खुद है। उत्तराखंड में सम्पन्न हुई 40 दिन की राष्ट्रीय सद्भावना यात्रा में यह तथ्य बार बार देखने को मिला। सभी शांति चाहते हैं और अहिंसा पर टिके रहना उनका स्वभाविक गुण है। यह यात्रा सद्भावना के प्रसार के अपने […]
क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?