पहले जैसा नहीं रहा अब चंबल

बीहड़ों में पगडंडियां उगाकर जिन्दगी की इबारत लिख रहा है जौरा आश्रम

चंबल के बीहड़ों में अब न तो सन साठ के दशक जैसी डकैतों की दहशत है और न ही हिंसक प्रतिशोध के वैसे भयावह किस्से ही अब कहीं सुनने को मिलते हैं। चंबल की वादियों में आयी इस अपूर्व शांति की वजह दक्षिण भारत का वह संत है, जिसने अपना समूचा जीवन इसके श्रृंगार में खपा दिया। दक्षिण भारत से आया यह संत अपने जीवन की परवाह किए बगैर इसे अपना कर्मक्षेत्र बनाकर इसकी सेवा में रम गया। डॉ. एसएन सुब्बाराव, जिनका व्यक्तित्व अपने आप में एक महोत्सव था। जौरा उनकी कर्मभूमि है तथा महात्मा गांधी सेवा आश्रम उनका तीर्थ। आइये जानें, 60 और 70 के दशक में हजारों बागियों का स्वेच्छया आत्मसमर्पण कराने वाला यह आश्रम आजकल क्या कर रहा है।

चंबल की धरती अपने विकास की सृजनगाथा के लिए इस संत की आज भी ऋणी है। डकैतों की दहशत के बाद अब चंबल की वीरान रहने वाली पगडंडियों ने भी अपनी विकास यात्रा शुरू की है। हालांकि अभी भी यह पूरी तरह सही नहीं है कि चंबल की दस्यु समस्या एवं हिंसक प्रतिशोध की बातें सिर्फ किस्से-कहानियों की बातें हैं। यदा-कदा समाज, पुलिस या प्रशासन से सताये हुए लोग बंदूक के बल पर अपना इंसाफ कराने के प्रयास में चंबल के मौन को अब भी तोड़ते ही रहते हैं।

मुरैना जिले के बहुत छोटे से कस्बे जौरा में स्थित महात्मा गांधी सेवा आश्रम महज किसी परिसर अथवा भवन या न्यास का नाम न होकर उन आदर्शों एवं संस्कारों का नाम बन गया है, जो यह अपने स्थापना काल से बांटता आ रहा है। गांधी के विचार यहां भाषण एवं वक्तव्य का विषय न होकर आचरण की विषयवस्तु हैं। यही वजह है कि इसकी कीर्ति देश में ही नहीं, अपितु सात समंदर पार भी गूंजती है। लोग यहां से मानव सेवा के संस्कार पाकर सुकून पाते हैं। महात्मा गांधी के नाम के व्यावसायीकरण के इस दौर में निजी लाभ के लिए गांधी और बापू के नाम पर स्थापित संस्थाओं की भी कमी नहीं है। लेकिन गांधीवाद के लिये समर्पित होकर उसके आदर्शों के अनुरूप चलने वाली यह संस्था इकलौती नहीं, तो देश और दुनिया की चंद गिनी-चुनी संस्थाओं में जरूर शुमार होगी।

अपनी स्थापना के बाद से ही निरंतर शांति और सद्भाव के मंद झोंके प्रवाहित करने वाले इस अनोखे तीर्थ की विश्वव्यापी पहचान के पीछे इसके संस्थापक डाॅ. एस.एन. सुब्बराव का विशाल व्यक्तित्व है। उन्होंने इसकी स्थापना 52 वर्ष पूर्व सन् 1970 में उस समय की, जब चंबल की धरती डकैत समस्या के अभिशाप से ग्रस्त थी। इसकी स्थापना का उद्वेश्य भले ही बागी समस्या का समाधान ढूंढ़ना नहीं रहा हो, लेकिन अपनी स्थापना के महज दो वर्ष बाद ही इसने बागी समर्पण जैसा असंभव सा काम कर दिखाया। हिंसा एवं खून-खराबे के स्याह अंधेरों में डूबी चंबल की वादियों एवं विकास से कोसों दूर यहां के रहवासियों को शायद इस बात का सपने में भी गुमान नहीं होगा कि गड़गड़ाहट से सदा गूंजने वाली चंबल घाटी की गोद में कभी अमन एवं शांति की शीतल बयार भी प्रवाहित हो सकती है। लेकिन उस दौर में असंभव सा दिखने वाला यह काम आज मुमकिम हो गया है।

आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षितिज पर आज इस की प्रतिभाएं सफलता के नये आयाम तलाश रही हैं। चंबल में बदलाव के नये युग के अवतरण के लिए आज भले ही श्रेय लेने की होड़ हो, लेकिन इसके मूल में निर्विवाद तौर पर गांधीवादी विचारक डाॅ. एसएन सुब्बराव के अहम योगदान को सभी एकमत से स्वीकारते हैं। 70 के दशक में चंबल की धरा पर आये इस देवदूत ने अमन एवं शांति की जो फसल बोई थी, उसी ने कालांतर में चंबल को विकास के नये युग की ओर करवट लेने के लिए बाध्य किया।

शांति के इस मसीहा ने हिंसा एवं बागी समस्या के युग में अपराध, दहशत एवं हिंसक प्रतिरोध के स्याह अंधेरों में खोई चंबल की वादियों को राह दिखाने के उद्वेश्य से इसे अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना। इसके लिए उन्होंने मुरैना जिले के जौरा कस्बे से लगभग 2 कि.मी. बाहर चर्मशोधन केन्द्र में इस वीरान अंचल के पीड़ित जनमानस की सेवा का मिशन शुरू किया। चंबल घाटी शांति मिशन के अपने चंद साथियों के साथ उन्होंने इस अंचल की अशिक्षा एवं पिछड़ेपन के अंधेरों को दूर करने के उद्वेश्य से 30 सितंबर 1970 को जौरा मे महात्मा गांधी सेवा आश्रम नामक नन्हें एक दीप को अलोकित किया। उस समय शायद कोई नहीं जानता था कि नन्हा सा यह दीपक कालांतर में देश और दुनिया को शांति एवं अहिंसा का संदेश देने वाला प्रकाश बनकर भटकी हुई मानवता को राह दिखाने का पुनीत कार्य करेगा। लेकिन मानवता की सेवा के लिए लोक कल्याण की भावना, समर्पण एवं निष्ठा से की गई मेहनत ने इस नन्हें से दीपक के उजास को नित नई प्रखरता एवं दीप्ति प्रदान की। इसी का परिणाम है कि 1970 में रोपा गया यह नन्हा सा पौधा आज विशाल दरख्त बनकर शांति, अहिंसा का झंडा बुलंद कर रहा है।

खादी एवं ग्रामोद्योग आधारित आजीविका का सृजन

गांधी जी ने कहा था कि स्वदेशी के बिना स्वराज बेजान लाश है और अगर स्वदेशी स्वराज की आत्मा है तो खादी एवं ग्रामोद्योग स्वदेशी का सार है।

इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि हमारे जैसे देश में जहां लाखों आदमी बेकार पड़े हैं, लाेग ईमानदारी के साथ अपनी रोजी कमा सकें, इसके लिए उनके हाथ-पैरों को किसी न किसी काम में लगाये रखना जरूरी है, खादी एवं ग्रामोद्योग उनके लिए आवश्यक है। खादी एवं ग्रामोद्योग की आज के समय में सख्त जरूरत है।


प्रारंभ में इसी भावना के साथ देश में खादी आंदोलन की शुरूआत हुई। खादी की प्रगति भी आजादी के बाद खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग की सहायता से अच्छी हुई, लेकिन आज के आर्थिक युग में कामगारों के पारिश्रमिक पर ध्यान देना आवश्यक है। खादी एवं ग्रामोद्योग में रोजगार के अवसर तो बहुत हैं पर पारिश्रमिक बहुत कम है, जिससे इस क्षेत्र से कामगारों का मोह भंग होता जा रहा है।

महात्मा गांधी सेवा आश्रम द्वारा इस वर्ष कामगारों के पारिश्रमिक में बढ़ोत्तरी की गई है। कामगारों को व्यक्तिगत वर्कशेड का निर्माण करने के लिए केवीआईसी की सहायता से अनुदान दिया गया, जिसके परिणाम स्वरूप इस वर्ष कत्तिनों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। संस्था द्वारा बेरोजगार युवकों, महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने तथा खादी के प्रचार-प्रसार के लिए खादी ग्रामोद्योग की विभिन्न गतिविधियां संचालित की जाती हैं, जिनमें खादी वस्त्र उत्पादन, विपणन, खादी भण्डार तथा प्रदर्शनियों के माध्यम किया जाता है।

संस्था का लक्ष्य
समानता, सामूहिकता और न्याय पर आधारित शोषण, अत्याचार व अन्याय से मुक्त समाज की रचना करना।

उदेश्य
* लोगाें को प्रगतिशील सामाजिक कानूनाें के प्रति जागरूक एवं संवेदनशील बनाना ताकि सामाजिक न्याय की स्थापना हा े सके।
* ग्राम आधारित संगठनाें काे उत्प्रेरित करना ताकि वे पंचायती राज संबंधी नियमाें तथा सामाजिक कानूनाें कोे वंचित समुदाय की अपेक्षाओं के अनुरूप केन्द्रित कर सकें। स्थानीय, राज्य स्तर तथा राष्ट्रीय स्तर पर उन मुद्दों की जनवकालत करना, जिनपर जनसहभागी स्वशासन की अवधारणा के अनुरूप परिवर्तन किये जाने की आवश्यकता है, ताकि आदिवासियों, दलितों तथा वंचितों को जीविकोपार्जन के अधिकार सुनिश्चित हो सकें।
* जीविकोपार्जन के संसाधनों पर पर्यावरणीय तथा सामाजिक अधिकारों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराना।
* सामाजिक एवं पर्यावरणीय न्याय के लिए जनवकालत करने हेतु पंचायतों एवं सभाओं को इस संबंध में किये गये अधिकारों की विस्तृत एवं व्यवहारिक रिपोर्ट करना, ताकि उनकी कमियों को दूर किया जा सके।

कार्यक्षेत्र
महात्मा गांधी सेवा आश्रम वर्तमान में देश के 7 राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओड़िसा, राजस्थान, असम और मणिुपर में कार्य कर रहा है।

उपलब्धियां एक नजर में
संवाद, रचना, सहयोग और समाज तथा सरकार के बीच तालमेल के माध्यम से न्याय, शांति, सद्भावना, अहिंसा तथा आत्मस्वावलंबन पर आधारित नए समाज की रचना में इस वर्ष के दौरान महत्वपूर्ण हस्तक्षेप तथा प्रयास किए गए। जिसके फलस्वरूप समतामूलक समाज के निर्माण की दिशा में जागरूकता, क्षमता विकास, समुदाय सशक्तिकरण और आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल हुई तथा कोरोना महामारी की चुनौतियों से निपटने मे नई सीख के साथ सामूहिक प्रयास के रूप में एक कारगर रणनीति पर काम करने का अनुभव प्राप्त हुआ।
कोरोना महामारी एवं राहत अभियान : विगत वर्ष पूरे देश को कोरोना महामारी का सामना करना पड़ा वर्षों से संकट झेल रहे सुदूर अंचल में निवास करने वाले गरीब एवं असहाय आदिवासी परिवारों के लिए कोरोना का संकट डराने वाला था। एक तरफ लॉकडाउन के कारण उनके परिवार के जो सदस्य पलायन कर मजदूरी करने गये थे, वे वहीं फंस गये, साथ ही गाँव में रह रहे परिवारों के सामने खाद्य सामग्री का संकट खड़ा हो गया। इस स्थिति में आश्रम की ओर से निःशुल्क खाद्य सामग्री वितरण राहत अभियान चलाया गया। अभियान के मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार थे –
लॉकडाउन के दौरान फंसे हुऐ लोगों की मदद : कोरोना महामारी के दौरान लगाये गये लॉकडाउन के कारण लाखांे की संख्या में अप्रवासी मजदूर शहर से गाँव की ओर लौटते हुए रास्ते में फंस गये। इस दौरान आश्रम की ओर से मोबाईल रिचार्ज, परिवहन सहायता, रास्ते में भोजन की व्यवस्था, मेडिकल सहायता, प्रशासनिक सहायता तथा वित्तीय सहायता दी गयी।


खाद्य सामग्री वितरण : लॉकडाउन के दौरान आश्रम के कार्यकर्ताओं द्वारा गाँव-गाँव में ऐसे परिवारों को चिन्हित किया गया, जो निःशक्त एवं निःसहाय थे और उनकी देखभाल करने वाला कोई व्यक्ति परिवार में नहीं था। इन सभी परिवारों को आटा, दाल, नमक, तेल एवं मसाले राहत सामग्री किट के रूप में उपलब्ध कराये गये।

छोटे बच्चों के लिए दूध का वितरण : लॉकडाउन के दौरान गाँव-गाँव में छोटे-छोटे बच्चो के सामने पीने के दूध का संकट हो गया था। इस बीच ऐसे बच्चों को चिन्हित कर दूध के पैकट के माध्यम से दूध वितरण करने का काम किया गया। इसके साथ ही निराश्रितों एवं बेसहारा बुजुर्गों महिलाओं, दिव्यांगों एवं बुनकरों को राहत सामग्री का वितरण किया गया।

प्रशासन के साथ मिलकर राहत शिवरों का संचालन : जिला प्रशासन के साथ बैठक कर गाँव में उत्पन्न हुई समस्याओं के समाधान केे बारे में चर्चा कर गाँधी आश्रम एवं जिला प्रशासन के सयुक्त तत्वाधान में गाँव में राहत शिविरों का संचालन किया, जिसके माध्यम से खाद्य सामग्री वितरण का कार्य किया गया।

दीवार लेखन के माध्यम से जन जागरण एवं मास्क वितरण : कोरोना महामारी से बचाव हेतु आश्रम द्वारा बड़ स्तर पर मास्क निर्माण एवं वितरण का कार्य किया गया। इसके साथ ही कोरोना बीमारी एवं इससे बचाव के तरीको का दीवार लेखन कर जागरूकता का कार्य किया गया।


मजदूरों को भुगतान : आर्थिक स्वावलम्बन की दिशा में खादी एवं ग्रामोद्योग के माध्यम से कताई, बुनाई एवं प्रसंस्करण के अतिरिक्त विकास की दिशा में वर्ष में कोई विशेष उपलब्धि हासिल नहीं हुई है, लेकिन गत वर्ष से लगातार काम करने वाले कामगारों को नियमित रूप से रोजगार उपलब्ध कराने में निश्चित रूप से कामयाब मिली है। कामगारों को नियमित रूप से काम देकर सूत कताई में 450 कामगारों को 10 लाख रूपये, 50 से अधिक बुनकरों को 7 लाख रुपये तथा प्रसंस्करण के कारीगरों को (रंगाई, धुलाई, सिलाई) में लगभग 10 लाख रूपये का पारिश्रमिक दिया गया है। इस प्रकार कुल मिलाकर लगभग 500 कामगारों को 25 लाख रूपये से अधिक की मजदूरी भुगतान की गई। ये सभी श्रमिक भारत सरकार की बीमा योजना के तहत पंजीकृत हैं। कामगारों के 25 बच्चों को पढ़ाई जारी रखने के लिए शिक्षण सहायता उपलब्ध कराई गई। इसी प्रकार ग्रामोद्योग के अंतर्गत मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। खादी उत्पादन तथा बिक्री एक दूसरे के पूरक हैं। इस वर्ष उत्पादन से फुटकर बिक्री अधिक है, अतः आगामी वर्ष में किसी ऐसे उत्पाद की खोज कर रहे हैं, जिसको खादी भण्डारों से विक्रय किया जा सके।

कुपोषण के खिलाफ लड़ाई : महात्मा गांधी सेवा आश्रम ने दानदाता संस्था के साथ मिलकर खाद्य सुरक्षा एवं पोषण विविधता के माध्यम से श्योपुर जिले को कुपोषण से बाहर लाने के लिए कार्यक्रम प्रारंभ किया है। इस कार्यक्रम को जिले की 1180 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर चलाना है। प्रथम चरण में, आश्रम ने सभी 1180 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को पोषण में विविधता लाने तथा नवजात शिशुओं के कुपोषण से बचाव के संबंध में चार चक्र प्रशिक्षण देने का काम किया। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से अभी तक 15 से 49 वर्ष की 70 हजार महिलाओं के साथ इस प्रक्रिया को साझा किया जा चुका है। पूरे जिले में 15 से 49 वर्ष की 1 लाख 47 हजार महिलाएं हैं। संस्था का मानना है कि यदि ये जागरूक और सक्षम होकर बच्चों के प्रति संवेदनशील बन जायें तो कुपोषण जैसी महामारी से जिले को मुक्त किया जा सकता है। इसी के साथ-साथ नवजात (0 माह से लेकर 22 माह तक के) शिशुओं की देखभाल करने के तरीकों को भी प्रशिक्षण में शामिल किया गया है। जहां एक तरफ महिलाओं को जागरूक करते हुए उनकी क्षमता का विकास किया जायेगा, वहीं दूसरी तरफ सरकार की योजनाओं तक समुदाय की पहुँच को सरल और सुगम बनाया जायेगा। जिले की गर्भवती एवं धात्री महिलाओं की लगातार निगरानी इस अभियान के तहत की जाती है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को सरकार द्वारा दिया जाने वाला पोषण आहार नियमित रूप से मिले और वे नियमित रूप से ग्रहण भी करें तथा नवजात शिशुओं के लिए भी नियमित रूप से पोषण आहार निर्विवाद रूप से उपलब्ध रहे। इसको सुनिश्चित करने के लिए सामुदायिक स्कोर कार्ड की प्रक्रिया के माध्मय से हितग्राही एवं सेवा प्रदाताओं की संयुक्त बैठक कर आमने-सामने उन योजनाओं के बारे में परिचय कराया जाता है, जो सेवा प्रदाता द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं। हितग्राही एवं सेवा प्रदाता के बीच की दूरी कम करते हुए आपसी व्यवहार को मजबूत किया जाता है। पोषण विविधता के इस अभियान में पोषणवाड़ी के विकास एवं संरक्षण के बारे में समुदाय को जागरूक करना, पोषणवाड़ी लगाने के लिए उनकी क्षमता में वृद्धि करना और पोषणवाड़ी केे माध्मय से वर्ष भर परिवार को सब्जी-भाजी की उपलब्धता सुनिश्चित करना भी शामिल है। इस वर्ष 50 गांवों में 2000 परिवारों के यहां पोषणवाड़ी लगाने का प्रयोग शुरू किया गया तथा लगभग 10 हजार फलदार पेड़ों, विशेष रूप से पपीता, सहजन, आंवला, आम, अमरूद तथा नीबू के पौधों का रोपण किया गया है। नहाने-धोने एवं बर्तन साफ करने में लगने वाले पानी से सब्जियां उगाने के बारे में भी समुदाय को तैयार किया गया। यह पहली बार हुआ जब सहरिया आदिवासी परिवारों ने बड़े पैमाने पर कद्दू, लौकी, तोरई, टमाटर, बैंगन, मिर्च, सेम आदि सब्जियों को उगाया तथा उसका उपयोग किया, जिससे निश्चित रूप से उनके पोषण की स्थिति में बदलाव आने लगे। इस कार्यक्रम को प्रशासन ने सराहा है।


जल, जंगल, जमीन पर समुदाय के अधिकार एवं उसके संवर्द्धन के माध्यम से आजीविका के लिए आत्मनिर्भर समुदाय : इस कार्यक्रम के तहत आश्रम छः राज्यों के 18 जिलों में काम कर रहा है, जिसमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़िसा, उत्तर प्रदेश, असम तथा मणिपुर शामिल हैं। 800 गावों में समुदाय जागरूकता, क्षमता विकास तथा समुदाय सशक्तिकरण के माध्यम से जीवन जीने के संसाधनों, जमीन तथा जंगल पर समुदाय के अधिकार को सुनिश्चित करते हुए जैविक खाद का उपयोग कर भूमि आधारित अर्थव्यवस्था के विकास के माध्यम से स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर समाज के निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए काम किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में 85 कार्यकर्ता अलग-अलग राज्यों में कार्यरत हैं। वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत परिवारों को भूमि का अधिकार दिलवाना, प्राप्त वनभूमि का परम्परागत ढंग से संरक्षण एवं संवर्धन करते हुए टिकाऊ एवं आत्मनिर्भर समुदाय का निर्माण करना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। इस कार्यक्रम में गरीब समुदाय के हित में नीतियों तथा कानूनों को गरीबोन्मुखी बनाने के लिए प्रांतीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर जन वकालत भी की जा रही है। इस वर्ष 3700 लोगों को वन अधिनियम 2006 के तहत मालिकाना हक मिल चुका है। 1950 आवासहीनपरिवारों को आवास के लिए भूमि के अधिकार प्रत्र हासिल हुए हैं। समुदायों तथा कार्यकर्ताओं के क्षमता विकास के लिए कानूनी प्रशिक्षण, जैविक खेती प्रशिक्षण तथा वन कानून प्रशिक्षण शिविर आयोजित किये गये।

बेटी पढ़ाओ अभियान : श्योपुर जिले में बालिकाओं में साक्षरता प्रतिशत बहुत कम है। इम्पैक्ट, अहमदाबाद की मदद से ऐसी बालिकाओं के लिए जो कभी स्कूल नहीं गईं या पढ़ाई बीच में छोड़ दिया, उनके लिए ऐसे 74 प्राथमिक शिक्षा केन्द्रों का संचालन श्योपुर में किया जा रहा है। प्रत्येक केन्द्र में 30 बालिकाओं को पंजीकृत किया गया है। इन 30 बालिकाओं को अधिकतम 5 साल तक केन्द्र के माध्यम से पढ़ाया जायेगा। जो बालिकाएं 5वीं कक्षा उत्तीर्ण कर लेंगी, उनको शासकीय विद्यालयों में भर्ती करवाकर शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा जायेगा। वर्तमान में 2220 बालिकाओं के साथ बेटी पढ़ाओ अभियान चल रहा है। इसमें 74 शिक्षक, 5 पर्यवेक्षक, 2 कार्यक्रम समन्वयक, 1 सलाहकार एवं 2 सहयोगी सदस्य इस प्रकार कुल 84 महिला-पुरूष कार्यकर्ता मिलकर पूरे अभियान का संचालन कर रहे हैं।
चाइल्ड लाइन : भारत सरकार तथा चाइल्ड इंडिया फाउन्डेशन की मदद से श्योपुर जिले में सभी जरूरतमंद बच्चों को सहायता उपलब्ध कराने, हर मुसीबत में बच्चों को सहयोग देने तथा बच्चों को उनका अधिकार दिलाने के लिए संबंधित योजनाओं से जोड़ने तथा 24 घंटे मदद उपलब्ध कराने के लिए चाइल्ड लाइन काम कर रहा है। इसमें 9 लोगों का समूह है। इस वर्ष भी 293 प्रकरण पंजीकृत किए गए, जिसमें खोए हुए बच्चों को उनके पालकों से मिलाया गया तथा बीमार बच्चों को उचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाई गयीं। बाल मजदूरों को मजदूरी से अलग करके बाल संरक्षण गृह की देखरेख में पढ़ाई तथा अन्य जरूरतों की व्यवस्था की गई। चाइल्ड लाइन श्योपुर जिले के बच्चों के अधिकार, संरक्षण एवं सहायता प्रदान करने के लिए 24 घंटे तत्पर है।

-रनसिंह परमार

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