बिहार की दुर्गति का जिम्मेवार कौन?

प्रो सच्चिदानंद पांडेय

नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि बिहार भारत का सर्वाधिक पिछड़ा और ग़रीब राज्य है। यह वही बिहार है, जिसे एक समय जॉन वार्दले हॉल्टन ने अपनी किताब बिहार; द हर्ट ऑफ़ इंडिया, 1949 में बिहार को “हर्ट ऑफ़ इंडिया(ऐन एपीटोम ऑफ़ द एंडलेस डाइवर्सिटी ऑफ़ द इंडियन सबकॉन्टिनेंट) ” कहा था और पाल एपेल्बी ने इसकी गिनती भारत के सबसे सुशासित राज्य के रूप में की थी।

बिहार की इस दारुण दशा के लिए यहां के नेता और एक के बाद एक आनेवाली सरकारें ही उत्तरदायी हैं। अन्यथा ऐसा क्यों है कि गंगा, कोशी, गंडक, बागमती, सोन और सरयू जैसी नदियों के जल से अभिसिंचित बिहार, मगधमौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष व  तथा वैशाली गणराज्य की स्वर्णिम आभा और वैभव का साक्षी रहा बिहार, आज भारत का सर्वाधिक पिछड़ा और ग़रीब राज्य है? एक के बाद एक आती बिहार की सरकारों और नेताओं के लिए यह शर्म व ग्लानि की बात है, डूब मरने की बात है. विकास और समृद्धि लाने की बात तो दूर, वे अपने राज्य की ग़रीबी और भुखमरी को मिटाने में भी इतने नाकाम रहे कि रोजी रोटी की तलाश में यहाँ के लोगों का भारी संख्या में पलायन होता रहा, जो आज भी उसी गति से बदस्तूर जारी है। फलतः बिहार मजाक का पात्र बनकर रह गया है।


दुर्भाग्यवश आज भी बिहार के राजनीतिक गलियारे से आशा की कोई किरण फूटती नजर नहीं आ रही है। बिहार के राजनीतिक गलियारे में घटाघोप अंधेरा छाया हुआ है। आम बिहारी निरंतर अलगाव व‌ पलायन के भाव का दंश झेल रहा है। यह बिहार के नेताओं के मुंह पर एक कड़ा तमाचा है। आवश्यकता है कि बिहार के लोगों की पीड़ा के आर्तनाद को सुना जाए। इस प्रश्न पर गंभीरता से विमर्श करने की जरूरत है कि क्यों आम बिहारियों को ऐसा लगता है कि बिहार में कोई विकल्प नहीं है और यह कि उनका भविष्य अंधकारमय है।


दरअसल केवल बिहार ही नहीं, तमाम विकासशील देशों के नेताओं की दिक्कत यह है कि उनकी विकास की अवधारणा पूरी तरह से पश्चिम से उधार ली गई है। विकास का हमारा अपना कोई देशज मॉडल नहीं है।  पश्चिमी देशों के विकास के मॉडल की हम नकल नहीं कर सकते, क्यों कि उनका मौजूदा मॉडल आज का नहीं है, यह लंबे समय से चले विकास का परिणाम है। उनकी जनसंख्या भी बहुत कम है।आज भारत के सामने जो आसन्न समस्याएं हैं, पश्चिमी देशों ने बहुत पहले ही उनपर काबू पा लिया था।


उनकी तुलना में भारत महज 74 साल पुराना एक जनसंकुल देश है, जिसके सामने ग़रीबी, भुखमरी आदि की भीषण समस्याएं हैं। भारत के पास जनसंख्या के अनुपात में संसाधन भी काफी कम हैं। आवश्यकता है कि हमारी योजनाएं देश की विशाल जनसंख्या, भुखमरी और गरीबी की समस्या के मद्देनजर ही बनें, लेकिन हम पश्चिम के विकास के मॉडल की अंधाधुंध नकल करने में लगे हैं। हम भूल रहे हैं कि हमारी जमीनी समस्याएं उनसे बहुत अलग तरह की हैं, मसलन रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार मुहैया कराने की हैं, जिनसे हम आंख नहीं चुरा सकते। पहले हमें प्राथमिकता के आधार पर अपनी जमीनी समस्याओं पर  अपना ध्यान केंद्रित करना होगा, न कि हाई फाई विकास पर। यदि हमारी नीतियां प्राथमिकता के आधार पर तय की जातीं, तो आज हमारे देश में 40 करोड़ से अधिक लोग ग़रीबी रेखा से नीचे जीने को अभिशप्त नहीं होते और न ही आजादी के 74 साल बाद भी 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज बांटने की नौबत आती।


बिहार के उज्जवल भविष्य के लिए एक ऐसे सशक्त और सक्षम  विकल्प की आवश्यकता है, जो बिहार के खोये हुए गौरव को लौटा सके। समय की मांग है कि बिहार में बदलाव और बेहतरी की संभावनाएं तलाशी जाएं। चूंकि राजनीति असंभव को संभव कर देने की कला है, इसलिए बिहार के बदलाव और बेहतरी के लिए राजनीतिक हस्तक्षेप अर्थात सक्षम और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले राजनीतिक नेतृत्व की महती आवश्यकता है। केवल राजनीतिक नेतृत्व ही नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में सक्षम नेतृत्व की जरूरत है। इस काम में बड़े पैमाने पर सक्षम और लोक-कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध व समर्पित शिक्षकों, कलाकारों साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, अभियंताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, उद्यमियों और प्रशासकों की जरूरत है।

Co Editor Sarvodaya Jagat

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