फीके पड़े आपातकाल के दिन

नरेंद्र मोदी ने सेना में भर्ती हेतु युवाओं के लिए जिस अग्निपथ योजना का उद्घोष किया है, उससे पूरे देश के युवाओं में आक्रोश के कारण आग लग गयी है। ऐसा इंदिरा गाँधी के आपातकाल में कभी नहीं हुआ। इतनी भीषण महंगाई और बेरोजगारी का ऐसा आलम भारत की जनता ने पहले कभी नहीं झेला है। नरेंद्र मोदी के अघोषित आपातकाल के आगे इंदिरा गाँधी का आपातकाल फीका पड़ गया है।

25 जून सन 1975 को इंदिरा गाँधी द्वारा घोषित आपातकाल और 2020 से लागू नरेंद्र मोदी के अघोषित आपातकाल की तुलना की जाये तो सबसे बड़ी बात यह निकलेगी कि ये अघोषित आपातकाल के दिन कोशिश करके भी भुलाये नहीं सकेंगे।

इंदिरा गांधी को विश्व मानचित्र में एक नया देश बांग्लादेश बनाने का गुमान था तो नरेंद्र मोदी को लोकसभा में भाजपा को दो तिहाई बहुमत दिलाने का गुमान है। इंदिरा गाँधी ने अपने सारे विरोधियों को जेल भेज दिया था, यहां तक कि जयप्रकाश नारायण सरीखों को भी नहीं छोड़ा था। अखबारों पर सेंसरशिप लागू कर दी गयी थी। नरेंद्र मोदी ने अपने वरिष्ठ जनों अटल, आडवाणी तथा जोशी जैसों को किनारे कर दिया। सरकार का विरोध करने वालों पर देशद्रोह जैसे कानून लगाकर जेल भेजा, पत्रकारों को भी नहीं छोड़ा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पूर्णतया रोक लगा दी गयी।

इंदिरा गांधी के आपातकाल में नसबंदी को सख्ती से लागू करके हर सरकारी सहायता के लिए नसबंदी का प्रमाण पत्र जरूरी कर दिया गया, जिससे जनता परेशान हुई, नसबंदी का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए साधु संन्यासियों की भी जबरन नसबंदी कर दी गयी।
नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी और जीएसटी लागू करके जनता की मुसीबतें बढ़ाईं। देश का प्रधान सेवक और चौकीदार होने का दम भरने वाले नरेंद्र मोदी ने चीनी महामारी कोरोना का वीजा (प्रवेश) रोकने में देर कर दी। एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि केरल प्रदेश में जनवरी में कोरोना के तीन केस मिले थे, यदि सरकार ने तभी रोकथाम की होती तो कोरोना महामारी से बचा जा सकता था। लेकिन तब नरेंद्र मोदी नमस्ते ट्रंप में व्यस्त थे। पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन लगाने के निर्णय के पूर्व विपक्षी राजनैतिक दलों से सलाह तक नहीं ली गयी। उद्योगपति राहुल बजाज ने कहा कि छोटे देशों की नकल करके भारत में संपूर्ण लॉकडाउन लगाने से देश की संपूर्ण जनता को कष्ट भोगना पड़ा। शहरों से गांव भागने के लिए लोगों को मजबूर करके ऐसा संकट खड़ा कर दिया गया कि ऐतिहासिक त्रासदी बन गयी।

इंदिरा गांधी के आपातकाल में पूरे देश का सामान्य जनजीवन इतना प्रभावित नहीं हुआ, जितना नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हुआ. कोरोना महामारी की अवधि में संसद से तीन किसान बिल पारित करके किसानों को आंदोलन करने पर विवश कर दिया गया। सीएए और एनआरसी जैसे कानूनों के चलते भी प बंगाल और असम जैसे प्रदेशों में उग्र आंदोलन हुए। देश में हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के मध्य नफरत फैलाने हेतु हिजाब, लिंचिंग, मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने, दिल्ली में दंगा भड़काने जैसे कार्यक्रम नरेंद्र मोदी के संरक्षण में चले, जिससे अल्पसंख्यकों में भय व्याप्त हो गया।

नसबंदी की तर्ज पर कोरोना इंजेक्शन लगवाने की अनिवार्यता सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से रुक गयी। मोदी काल की अनेक ज्यादतियों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा, ऐसा इंदिरा काल में नहीं हुआ। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश के बाद भी इंदिरा काल में विनोबा जी द्वारा पवनार आश्रम में आपातकाल के मूल्यांकन हेतु आचार्यकुल की बैठक बुला लेना बड़ी बात थी, जिसमें 26 वाइस चांसलर और 4 राष्ट्रीय समाजसेवी शामिल हुए थे। इस बैठक के इस निष्कर्ष कि- लोकतंत्र की गाड़ी पटरी से उतर गयी है- ने इंदिरा को आपातकाल हटाकर चुनाव कराने पर मजबूर कर दिया था। नरेंद्र मोदी ने सेना में भर्ती हेतु युवाओं के लिए जिस अग्निपथ योजना का उद्घोष किया है, उससे पूरे देश के युवाओं में आक्रोश के कारण आग लग गयी है। ऐसा इंदिरा गाँधी के आपातकाल में कभी नहीं हुआ।

कुल मिलाकर इंदिरा का आपातकाल तो भुलाया भी जा सकता है, किन्तु मोदी का अघोषित आपातकाल, जो विशेषकर 2020 से जारी है, उसे कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। इतनी भीषण महंगाई और बेरोजगारी का ऐसा आलम भारत की जनता ने पहले कभी नहीं झेला है। नरेंद्र मोदी के अघोषित आपातकाल के आगे इंदिरा गाँधी का आपातकाल फीका पड़ गया है।

-रवीन्द्र सिंह चौहान

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