हमारे मुल्क के मुस्तकबिल का नाम है गांधी

आयुष चतुर्वेदी अभी अभी 18 वर्ष के हुए हैं. दो वर्ष पहले, जब वे केवल 16 वर्ष के थे, तब सोशल मीडिया पर उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे अपने स्कूल के एक कार्यक्रम में गांधी जी पर बोलते दिखाई दिए थे. वीडियो में कही गयी आयुष की बातों ने देश का ध्यान अपनी और खींचा. विनोद हुआ और रवीश कुमार जैसे जाने-माने पत्रकारों ने तब आयुष के इंटरव्यू किये थे। उनके उस वायरल वीडियो का टेक्स्ट उस समय सर्वोदय जगत में प्रकाशित हुआ था, इस अर्थ में सर्वोदय जगत के पाठक आयुष से थोड़े परिचित भी हैं. गांधी जी की शहादत और विरासत को समर्पित इस अंक के लिए हमने आयुष से लिखने का आग्रह किया था. उन्होंने जो लिखा, वह एक बार फिर आपके सामने है. एक ऐसे वक़्त में जब देश के इतिहास के साथ खिलवाड़ करने और देश का इतिहास बनाने वालों की छवि धूमिल किये जाने के योजनाबद्ध प्रयास चल रहे हैं, एक ऐसा भी युवा है, एक ऐसी भी कलम है.

जब हम सोचते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे मजबूत धुरी कौन था, तो जेहन में सबसे पहले गांधी जी की ही तस्वीर उभरती है। उन्होंने पूरे विश्व को सत्याग्रह नाम की आंदोलन की एक नई पद्धति दी। यह पद्धति द्वेष, घृणा, हिंसा की नहीं, बल्कि प्रेम, सद्भाव और अहिंसा की पद्धति थी। उसी पद्धति पर चलकर हमने विश्व की सबसे बड़ी शक्ति का सफलतापूर्वक सामना किया। यूं तो, आज़ादी की लड़ाई में तमाम लोगों की मेहनत, विचार और लगन शामिल थी, लेकिन गांधी जी उन तमाम लोगों के समूह के युवा मन पद घृणा, वैमनस्य और हिंसात्मक केंद्रबिंदु बन गये थे।


इधर कुछ वर्षों में असहमतियों को दुश्मनी जैसा बना दिया गया है। विचार थोपने की कोशिशें की जा रही हैं। इस दबाव से हम बच सकते हैं. हमें उन पर सत्य का दबाव बनाना होगा। अगर हम सत्य का दबाव नहीं बनायेंगे तो फिर उनके झूठ का दबाव हम पर हावी होता जाएगा। यहाँ गांधी जी एक की शर्त भी है कि सत्य का हमारा दबाव समानता और स्नेह के विचार से भरा हुआ हो। भारत की आज़ादी का आंदोलन, केवल सत्ता परिवर्तन का आंदोलन नहीं था, बल्कि वैचारिक रूप से आज़ाद हो जाने का आंदोलन था। यह एक ऐसा समाज गढ़ने का आंदोलन था, जहां इन सारी बुराइयों में से कोई भी बुराई बची न रहे, हमें उस आंदोलन की विरासत को जिलाये रखना है। और वह ऐसे ही ज़िंदा रहेगा कि हम उन तमाम बुराइयों को खत्म करने का प्रयास करते रहें।

आज जब हम देखते हैं कि उन्हीं गांधी के विषय में तमाम भ्रांतियां, झूठ और फेक न्यूज़ फैलाई जाती है तो हम युवाओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि सबसे पहले तो हम गांधी को पढ़ना शुरू करें, फिर उनके विचार के मूल तत्व को पकड़कर अपनी नई राह बनाएं, नई लकीर खींचें। अगर यह लकीर कागज़ पर खिंची तो एक बेहतरीन किताब बनेगी और यदि यह लकीर ज़मीन पर खिंची तो एक नई राह की पगडंडी बनेगी। हमारे मुल्क़ का मुस्तक़बिल इसी लकीर, इसी किताब और इसी पगडंडी से तय होगा।


इस दौर में जब छोटे-से-छोटे आंदोलन को भी लाठी, बंदूक और आंसू गैस के गोलों से दबा दिया जाता है, तब गांधी याद आते हैं, जिन्होंने छोटी-छोटी बातों पर ऐसे-ऐसे आंदोलन खड़े किए कि उन आंदोलनों का सामना करने में ब्रिटिश सरकार के होश फाख्ता हो गये। वह गांधी जी ही थे, जिन्होंने एक मुट्ठी नमक को अंग्रेजों के राज में बम में बदल दिया था। एक ऐसा बम, जो जब फूटा तो समूचे भारत में क्या साथी और क्या विरोधी, सब चमत्कृत रह गये। नमक जैसी मामूली चीज़ को सिविल नाफ़रमानी से जोड़ना गांधी जी के ही बस की बात थी।


बम और पिस्तौल क्रांति नहीं लाते, क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है, यह बात भगत सिंह ने कही थी। जब आप गरीबों-मज़लूमों के लिए आंदोलन करना चाहते हैं, उनके हक़ की बात करना चाहते हैं, तो आपको हथियार भी उन्हीं के जैसे पकड़ने होते हैं– नमक, रुई, नील जैसे मामूली हथियार। गांधी जी से हमें सीखना है कि आंदोलन के हथियार कैसे तय किए जाएं! बम एक बार में फूटकर खत्म हो जाएगा, पिस्तौल अपनी क़ूवत के मुताबिक़ छः, दस या बीस गोलियों में खत्म हो जाएगी, लेकिन नमक हमेशा ज़ालिम की आंखों में भभाएगा, आंख की किरकिरी बन जाएगा। एक सफल आंदोलन के लिए आंखें फोड़ने वाले नहीं, आंख में किरकिरी डालने वाले हथियार ढूंढिए, यह हमें गांधी ने सिखाया।


आज जब हम देखते हैं कि उन्हीं गांधी के विषय में तमाम भ्रांतियां, झूठ और फेक न्यूज़ फैलाई जाती है तो हम युवाओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि सबसे पहले तो हम गांधी को पढ़ना शुरू करें, फिर उनके विचार के मूल तत्व को पकड़कर अपनी नई राह बनाएं, नई लकीर खींचें। अगर यह लकीर कागज़ पर खिंची तो एक बेहतरीन किताब बनेगी और यदि यह लकीर ज़मीन पर खिंची तो एक नई राह की पगडंडी बनेगी। हमारे मुल्क़ का मुस्तक़बिल इसी लकीर, इसी किताब और इसी पगडंडी से तय होगा।

आयुष चतुर्वेदी

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