जमशेदपुर कनवेंशन ने फूंका आंदोलन का बिगुल!

महंगाई बढ़ नहीं रही, बढ़ायी जा रही है। सरकार जमाखोरों और मुनाफाखोरों के साथ है और उन पर कोई कार्रवाई नहीं करना चाहती, बल्कि खुद अनैतिक मुनाफाखोरी करने में लगी हुई है।

25 जुलाई को जमशेदपुर में महंगाई, बेरोजगारी, श्रम कानून, संसाधनों की लूट, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी समस्याओं के समाधान पर केन्द्रित एक संयुक्त कन्वेंशन का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने इन समस्याओं के लिए स्पष्ट रूप से केन्द्र सरकार की नीतियों और योजनाओं को दोषी ठहराया। तय किया गया कि इन समस्याओं के समाधान के लिए दीर्घकालिक आंदोलन किया जायेगा। कन्वेंशन का संचालन रवीन्द्र प्रसाद, जयचंद प्रसाद और सियाशरण शर्मा ने किया। जमशेदपुर कन्वेंशन ने यह प्रस्ताव भी पारित किया-

यह कन्वेन्शन बेतहाशा बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी, शारीरिक व मानसिक श्रम तथा प्राकृतिक व सार्वजनिक संसाधनों की लूट, आमजन के हाथ से शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं को छीनते जाने की साजिशों, समाज की शांति, सुरक्षा एवं सद्भाव को छिन्न-भिन्न करने वाली कार्रवाइयों और नागरिकों के नैसर्गिक हकों को नकारने के खिलाफ है। सूत्र में कहें तो यह कन्वेंशन जिन्दगी के हक का जननाद है।

यह कहना ज्यादा सटीक होगा कि महंगाई बढ़ायी जा रही है। सरकार जमाखोरों और मुनाफाखोरों के साथ है और उन पर कोई कार्रवाई नहीं करना चाहती, बल्कि वह खुद अनैतिक मुनाफाखोरी करने में लगी हुई है। डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस, वाहन गैस दुनिया के अधिकांश देशों से ज्यादा महंगे हैं। बार बार माँग के बावजूद इन्हें जीएसटी के तहत नहीं लाया जा रहा है। बेतहाशा बढ़ती महंगाई के बीच सरकार भोजन के उन सामानों पर भी जीएसटी बढ़ा रही है, जो पहले मुक्त थे या जिन पर कम दरें लागू थीं। बेरोजगारी दूर करने की बात तो छोड़ दें, बेरोजगारी कम करने के मामले में भी सरकार विफल और गैरजिम्मेदार रही है। रोजगार देने की जगह इस सरकार ने करोड़ों लोगों के रोजगार को तबाह कर दिया है। ऊपर से रेलवे और सेना की नौकरियों में बड़ी कटौती की है।


जो लोग रोजगार में हैं भी, वे शोषण और लूट के शिकार हैं। शरीर श्रम करने वाले हों या मानसिक श्रम करने वाले, 10-12 घंटे असुरक्षित और अस्थायी श्रम करने को मजबूर हैं। सामान्य जीवन-निर्वाह लायक पारिश्रमिक से भी वंचित हैं। श्रमिक संघर्षों की बदौलत बने अंशत: श्रमपक्षीय कानूनों को खत्म कर नियोजकों को निरंकुश बनाया जा रहा है। नियोजकों का मुनाफा बढ़ता है, सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, अफसरों, क्लर्कों का वेतन बढ़ता है, पर मजदूरों की मजदूरी ठहरी रहती है। प्राकृतिक संसाधनों, सार्वजनिक उद्यमों और संस्थानों को घाटा उठाकर पूँजीपतियों की निजी सम्पति बनाया जा रहा है। अचल सम्पदा को बेचकर रकम बनाने की सनक सवार है।

उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण के इस दौर में अनेक पूँजीवादी देशों में भी नागरिकों की शिक्षा और चिकित्सा, सरकारों की जिम्मेवारी बनी हुई है। लेकिन अपने देश में शिक्षा और स्वास्थ्य बाजार में मनमाने दामों पर बिकने वाली सुविधा बनती जा रही है। सरकारी शिक्षण और चिकित्सा संस्थानों को निजी उद्यमों को दिया जा रहा है या बदइंतजामी से बरबाद किया जा रहा है। शिक्षा और चिकित्सा को सर्वजन की नहीं, विशिष्ट जनों की सुविधा में सीमित किया जा रहा है। अशिक्षा और बीमारी को मिटाने की जगह बढ़ाने की सरकारी नीति चल रही है। कोरोना काल में जब बहुसंख्यक जनता की सम्पत्ति की क्षति हुई है, ऐसे में डॉलरपतियों की सम्पत्ति सबसे तेज गति से बढ़ी है।

इन समस्याओं की सबसे बुरी मार दलित, आदिवासी, ठेका मजदूर, भूमिहीन व छोटे किसान, पिछड़ों और महिलाओं पर पड़ती है। जब भी जनकल्याण की कोई योजना बनती है, ये उसके लाभ से या तो वंचित रह जाते हैं या सबसे छोटा हिस्सा पाते हैं। इस नियति को पलटने के लिए इन समुदायों को इन समस्याओं पर चलने वाले जनांदोलनों की सचेत रीढ़ बनना होगा। आगे बढ़कर इन आंदोलनों का नेतृत्व लेना होगा। ताकि कोई इनका हिस्सा न हड़प सके, ताकि वर्जना और विषमता बढ़ने की बजाय घटती जाय।

सरकार असहमति जताती और सवाल उठाती हर आवाज को कुचलने पर आमादा है। लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, संस्थानों तथा संवैधानिक नागरिक अधिकारों का अतिक्रमण किया जा रहा है। हमारा लक्ष्य लोकतंत्र की रक्षा और जातिवाद तथा साम्प्रदायिकता का खात्मा है। यह कन्वेन्शन इसे जनांदोलन बनाने के लिए इन माँगों या नारों के साथ सघन अभियान चलाने की जरूरत समझता है.

रोजगार हर नागरिक का मूल अधिकार और सरकार का प्राथमिक दायित्व है। सरकार सम्पूर्ण रोजगार का आधार बनाये। रोजगार न दे पाने पर हर बेरोजगार को जीवन जीने लायक न्यूनतम और मानवीय जीवन भत्ता दे। सरकारी रिक्तियों को आरक्षण प्रावधानों का सख्त पालन करते हुए तत्काल भरा जाय। जमाखोरी और मूल्यवृद्धि पर अंकुश लगे। पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के तहत लाया जाय। जीवन-आवश्यक वस्तुओं पर शून्य या न्यूनतम टैक्स लगे। प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय जनता का निर्णायक अधिकार हो। सरकारी व सार्वजनिक संसाधनों, संस्थानों का विनिवेशन और बिक्री बन्द हो। आवश्यक होने पर इनके संचालन की वैकल्पिक व्यवस्था बनायी जाय। स्थायी प्रकृति के कार्यों में अस्थायी कर्मी रखना बन्द हो। छह घंटे की कार्य पाली हो। श्रम कोडों को रद्द कर पुराने श्रम कानून बहाल हों। हर बीमार को आवश्यक चिकित्सा उपलब्ध कराने की गारंटीशुदा व्यवस्था बने। बेरोजगार और बीपीएल जन को मुफ्त चिकित्सा हासिल हो। हर जरूरतमंद को 12 वीं तक की मुफ्त शिक्षा मिले। हर रोजगारशुदा व्यक्ति और व्यावसायिक उद्यम से आय व मुनाफे के निश्चित अनुपात में शिक्षा-स्वास्थ्य अंशदान लिया जाय। शिक्षा और स्वास्थ्य पर कुल सरकारी खर्च का न्यूनतम 20% बजट लगाया जाय। मूल्य, वेतन, मजदूरी, आमदनी एवं मुनाफे का न्यूनतम और अधिकतम अनुपात तय हो।

-सुखचन्द्र झा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

लोकतंत्र की शोकधुन पर आजादी का अमृतपान

Mon Aug 29 , 2022
वर्तमान केन्द्रीय सरकार जिस दक्षिणपंथी विचारधारा से संचालित है, उसकी आस्था लोकतंत्र में नहीं है। वे महज लोकतंत्र का नारा लगाते हैं और लोकतंत्र के सारे अवसरों का इस्तेमाल लोकतंत्र को खत्म करने में करते हैं। इसलिए आजादी का अमृत महोत्सव उनके लिए महज अमृतपान का एक मौका भर है। […]
क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?