जटिलताएं पैदा होने से पहले मधुमेह को नियंत्रित करें

स्वास्थ्य

डायबिटीज, जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है, चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है, जिसमें लंबे समय तक रक्त में शर्करा का स्तर उच्च बना रहता है। उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में अक्सर पेशाब आना तथा प्यास और भूख में वृद्धि होती है। यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाय, तो मधुमेह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है। इसकी वजह से पैदा होने वाली गंभीर और दीर्घकालिक जटिलताओं में हृदय रोग, स्ट्रोक, किडनी की विफलता, पैर अल्सर और आंखों को नुकसान शामिल है।

मधुमेह के कारण
पाचन शक्ति से अधिक खाना, श्रम का अभाव, मोटापा, कब्ज, क्लोम ग्रंथि का दुर्बल होना, इन्सूलिन का अभाव, मानसिक आघात, लगातार चिन्ताएं, मानसिक कुंठा, दुर्भावना, मनोविकार, स्नायुविक दुर्बलता, पैतृक प्रभाव, अधिक संभोग आदि मधुमेह के प्रमुख कारण मने जाते हैं।

तात्कालिक आराम के लिए प्राकृतिक इलाज
करेले का 1-2 तोले रस नित्य पीने तथा उसकी सब्जी खाएं। ताजे आंवले का रस शहद में मिलाकर पीयें। पका केला शहद के साथ खाएं। जामुन और आम का रस समान मात्रा में मिलाकर लें। आधा तोला मेथी के दाने शाम को पानी में भिंगोकर, प्रात: उसे खूब घोंटकर और छानकर, बिना कुछ मिलाये एक सप्ताह पियें। जामुन की चार हरी पत्तियों को पीसकर दिन में दो बार पियें। चने को दूध में भिगो दें, फूल जाने पर शहद मिलाकर खाएं। जामुन की गुठली, बेलपत्र तथा करेले का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर दो-दो माशे सुबह शाम पानी के साथ लें। यदि बार-बार और अधिक मात्रा में पेशाब आये, प्यास लगे, तो आठ ग्राम पिसी हुई हल्दी का पाउडर नित्य दो बार पानी से फांक लें या आधा चम्मच शहर में मिलाकर चाट लें। त्वरित लाभ के लिए इन प्राकृतिक औषधियों को आजमाकर देखें, त्वरित ही लाभ भी मिलता है. यहाँ तक कि केवल चने की रोटी ही दस दिन तक खायें, तो पेशाब में शक्कर आना बंद हो जाता है।

परहेज
नमक, चीनी और मैदे को सफेद जहर कहा जाता है. मांस, मछली, अंडा आदि अमानुषिक पदार्थ कहे जाते हैं. अधिक तले भुने, डेयरी प्रोडक्स, डिब्बा बंद आदि निर्जीव आहार कहलाते हैं. इन्हें त्याग दें. मादक द्रव्य शराब और उत्तेजक पदार्थ सिगरेट, चाय आदि से सर्वथा दूर रहें. बहुत मीठे फल, साबूदाना, दालें, चुकन्दर, चावल, आलू, शकरकंद, अरबी, शकर्रा, गुड़, सूखे मेवे, अधिक वसा, सेकरीन तथा मानसिक उद्वेग आदि से भी दूर रहें।

स्थाई मुक्ति के लिए
आहार- श्वेतसार, प्रोटीन, वसा आदि धीरे-धीरे घटाते हुए बिल्कुल बंद करके यथाशक्ति कुछ दिन नींबू रस पर उपवास करें। बाद में कुछ दिन संतरा, मकोय, मोसम्मी, अमरूद, अनानास, जामुन, अनार, सेब, नाशपाती, पका गूलर, आम, बेलपत्र, अंगूर, आंवला, कच्चा नारियल, चकोतरा, पपीता, कुकरौंधा, ग्रेपफ्रूट आदि फल या फल रस अथवा ककड़ी, खीरा, मूली, धनिया, चौराई, पालक, मेथी, पत्तागोभी, बथुआ, लौकी, परवल, तोरई, करेला, टिण्डा, सलाद पत्ती, प्याज, टमाटर, शलजम, गांठ गोभी आदि साग-सब्जी या सब्जी सूप लें। बाद में कुछ दिन मठ्ठा लेने के बाद धीरे-धीरे जौ और चना की मिली जुली रोटी या जौ या चने की रोटी पर आ जायें और साथ में उपरोक्त फल, सब्जी, मठ्ठा, अंकुरित मूंग व चने का भी प्रयोग करें। गाजर का रस 310 ग्राम, पालक का रस 185 ग्राम मिलाकर पियें।

सावधानी – पेशाब में चीनी बंद होने पर ही शहद व पानी में भिंगोकर किशमिश ले सकते हैं।

सहायक उपचार – शुरू में लघु शंख प्रक्षालन या अति दुर्बलता में एनिमा का प्रयोग करें। कमजोर रोगी केवल स्पंज बाथ करके गीली चादर लपेट लें। तेल मालिश व धूप स्नान या स्टीम बाथ के बाद ठंडे जल से स्नान करें और सूखी मालिश करें। दिन में पर्याप्त जल पियें। कमजोर रोगी यथाशक्ति नंगे पांव टहलें, तैरें और पेट लपेट, गर्म पाद स्नान आदि लें। कुंजर क्रिया, जलनेति, मिट्टी पट्टी, रीढ़ स्नान, पेट पर गर्म-ठंडा सेंक आदि का प्रयोग भी करें। कमजोर रोगी योगनिद्रा, नाड़ी शोधन, प्राणायाम, शीतली व शीतकारी प्राणायाम करें। अनाहत चक्र में ध्यान केन्द्रित रखते हुए सुप्तवज्रासन लगायें। गुदा व जननेन्द्रि नसों को ऊपर खींचते हुए ताड़ासन करें। जालंधर बंध के साथ भस्रिका प्राणायाम करें। यथाशक्ति अवस्थानुसार सर्वांगासन, मत्स्यासन, योगमुद्रा, वज्रासन, गोमुखासन, पवनमुक्तासन, भुजंग, शलभ, धनुरासन, अर्द्धमत्स्येन्द्र आसन, हलासन, पश्चिमोत्तान, उष्ट्रासन, शशांक, शवासन, सूर्यनमस्कार, नौकासन, चक्करासन, मयूरासन आदि आसन करें। उडि्डयान बंध, अग्निसार क्रिया, कपालभांति व उज्जायी, प्राणायाम करें तथा भ्रमरी प्राणायाम के साथ ‘ओउम’ ध्वनि का उच्चारण भी करें। हरे रंग की बोतल का सूर्य तप्त जल प्रात: खाली पेट पियें। दिन में कई बार विशेषकर प्रात: सायं और रात को सोने से पहले जी खोल कर हंसने के बाद ये वाक्य दोहरायें – मैं प्रतिदिन स्वस्थ हो रहा हूं … परमपिता परमात्मा का मुझे सहारा है …।

विशेष सुझाव- इन्सूलिन लेने की आदत को एकदम बंद न करें। भोजनचर्या की व्यवस्था तथा उपरोक्त उपचार व्यक्ति की दशाओं को देखकर ही करें। रोगी को थकाने वाले अधिक उपचार न करें। श्रम व विश्राम का संतुलन रखें। अल्पाहार को खूब चबायें। खाने के साथ पानी न पियें। आहार के बाद वज्रासन लगायें। यदि इस एक क्रम से पूर्ण स्वास्थ्य न मिले तो आहार व उपचार के 2-3 और क्रम दुहरायें। चिन्ता छोड़कर प्रात: सायं एवं रात्रि गायत्री मंत्र का जाप करके मधुमेह से पूर्ण मुक्ति के लिए सच्चे दिल से प्रार्थना करें।

-‘प्राकृतिक चिकित्सा का सामान्य ज्ञान’ से

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